Site icon India's beloved learning platform

बिहारीलाल जी के दोहे अर्थ समेत – Bihari ke Dohe with Meaning

Bihari ke Dohe

बिहारी लाल हिंदी साहित्य के एक महान यशस्वी और विद्धान कवि के रूप में जाने जाते थे। महाकवि बिहारीलाल जी विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे जिनकी प्रतिभा को देखकर हर कोई आर्कषित हो जाया करता था।

आपको बता दें कि जब 1635 ईसा पूर्व में बिहारीलाल जी आमेर के राजा जयसिंह से मिलने गए थे तब राजा जयसिंह उनकी प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बिहारी लाल जी को अपने दरबार में रख लिया।

जिसके बाद बिहारीलाल जी जयपुर नरेश के दरबार में रहकर काव्य-रचना करने लगे, जहां उन्हें पर्याप्त धन और यश मिला।

हिन्दी साहित्य के रीति काल के कवियों में बिहारीलाल जी का महत्वपूर्ण स्थान था।। महाकवि बिहारी जी अपने काव्यगत रचना के कारण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुए थे। कवि बिहारी की रचना सतसई जो कि एक मुक्तक काव्य है।

इस रचना में कुल 719 दोहे संकलित किए गए हैं जो कि बेहद आसान और सरल भाषा में लिखी गई है और जिनके अर्थ काफी सुंदर और सरहानीय है।

बिहारीलाल जी के दोहे अर्थ समेत – Bihari ke Dohe with Meaning

आपको बता दें कि बिहारी जी की सतसई में भक्ति, नीति, हास्य व्यंग्य, वीरता, राज प्रशस्ति, धर्म, सत्संग महिमा और श्रृंगार का वर्णन बखूबी किया गया हैं। वहीं बिहारीलाल जी के दोहे – Bihari ke Dohe एक कविता नहीं बल्कि एक दर्शन की तरह हैं, जिसमें जीवन का गहरा अर्थ छिपा है। इसलिए बिहारी जी के दोहे के बारे में कहा जाता है कि –

‘सतसैया के दोहरे ज्यों नाविक के तीर, देखन में छोटन लगे घाव करे गम्भीर।’

अर्थात उनके दोहे जो देखने में छोटे लगते है। लेकिन अगर इन दोहों का अर्थ को गौर से समझा जाए तो उसमे इंसान के दिल को छू जाने वाले बेहद भावुक और मार्मिक संदेश छिपे होते है।

वहीं बिहारीलाल जी ने अपने दोहों – Bihari ke Dohe के माध्यम से राधा -कृष्ण के श्रद्धा और प्रेम को जनमानस तक पहुंचाने की कोशिश की है। इसीलिए आज भी उनके दोहे काफी लोकप्रिय है। आज हम इस आर्टिकल में आपको बिहारीलाल जी के कई ऐसे दोहों – Bihari ke Dohe के बारे में बताएंगे अगर जिनका अनुसरण किया जाए तो लोगों का जीवन बदल सकता है और वे सफलता की नई ऊंचाइयों को छू सकते हैं –

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 1- Bihari ke Dohe 1

इस दोहे में बिहारीलाल जी ने प्रेम के महत्व को समझाने की कोशिश की है –

दोहा:

दृग उरझत, टूटत कुटुम, जुरत चतुर-चित्त प्रीति।
परिति गांठि दुरजन-हियै, दई नई यह रीति।।

अर्थ:

प्रेम की रीति अनूठी है। इसमें उलझते तो नयन है, पर परिवार टूट जाते हैं, प्रेम की यह रीति नई है इससे चतुर प्रेमियों के चित्त तो जुड़ जाते हैं पर दुष्टों के हृदय में गांठ पड़ जाती है।

क्या सीख मिलती है:

बिहारीलाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्यार के महत्व को समझना चाहिए और मिल-जुल कर रहना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 2 – Bihari ke Dohe 2

इस दोहे में बिहारीलाल जी ने अपनी मन की वेदना श्री कृष्ण से प्रकट की है लेकिन जब उनकी वेदना भगवान श्री कृष्ण नहीं सुन रहे हैं तो वे उन्हें भी इस संसार की तरह स्वार्थी बता रहे हैं-

दोहा:

कब को टेरत दीन ह्वै, होत न स्याम सहाय। तुम हूँ लागी जगत गुरु, जगनायक जग बाय।।

अर्थ:

संत बिहारी अपने इस दोहे में भगवान् श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे कान्हा मैं कब से तुम्हे व्याकुल होकर पुकार रहा हूँ और तुम हो कमेरी पुकार सुनकर मेरी मद्द नहीं कर रहे हो, मानो आप को भी संसार की हवा लग गयी है अर्थात आप भी संसार की भांति स्वार्थी हो गए हो।

क्या सीख मिलती है:

दुनिया में ज्यादातर लोग स्वार्थी जो सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखते हैं और दूसरों की मद्द नहीं करते हैं, इसलिए कवि ने श्री कृष्ण द्धारा पुकार नहीं सुनने पर उन्हें भी स्वार्थी कहकर संबोधित किया है। अर्थात हमें स्वार्थी नहीं बनना चाहिए और परोपकार करना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 3 – Bihari ke Dohe 3

जो इंसान अपने स्वभाव को बदलने की कोशिश करते हैं या फिर कई लोग यह जताते हैं कि अब उनका स्वभाव पहला जैसा नहीं रहा वे सुधर गए हैं तो उन लोगों के लिए बिहारीलाल जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से बड़ी बात कही है।

दोहा:

कोटि जतन कोऊ करै, परै न प्रकृतिहिं बीच। नल बल जल ऊँचो चढ़ै, तऊ नीच को नीच।।

अर्थ:

बिहारी जी कहते हैं की कोई भी मनुष्य कितना भी प्रयास क्यों न कर ले फिर भी किसी भी इन्सान का स्वभाव नहीं बदल सकता जैसे पानी नल में उपर तक तो चढ़ जाता हैं लेकिन फिर भी उसका स्वभाव हैं नहीं बदलता और वो बहता नीचे तरफ ही है।

क्या सीख मिलती है:

बिहारीलाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने प्राकृतिक स्वभाव को कभी नहीं बदलना चाहिए और हम चाहे कितनी भी सफलता हासिल क्यों नहीं कर लें लेकिन हमें कभी इस पर घमंड नहीं करना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 4 – Bihari ke Dohe 4

जब कोई इंसान एक ही गलती बार-बार दोहराता है या फिर विपत्ति के समय प्रयास किए बिना ही सब कुछ भगवान पर डाल देता है तो ऐसे लोगों के लिए बिहारीलाल जी ने इस दोहे में बड़ी बात कही है।

दोहा:

नीकी लागि अनाकनी, फीकी परी गोहारि। तज्यो मनो तारन बिरद, बारक बारनि तारि।।

अर्थ:

बिहारीलाल जी श्री कृष्ण से कहते हैं कि कान्हा शायद तुम्हेँ भी अब अनदेखा करना अच्छा लगने लगा हैं या फिर मेरी पुकार फीकी पड़ गयी हैं मुझे लगता है की हाथी को तरने के बाद तुमने अपने भक्तों की मदत करना छोड़ दिया।

क्या सीख मिलती है:

यशस्वी और विद्धान कवि बिहारीलाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा ईश्वर के भरोसे नहीं बैठना चाहिए क्योंकि यह जरूरी नहीं कि ईश्वर भक्त की प्रार्थना को बार-बार सुन ही ले। इसलिए खुद कुछ करने में भी यकीन करना चाहि।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 5 – Bihari ke Dohe 5

बिहारीलाल जी ने नीचे लिखे दोहे मे राधारानी से अपनी जीवन की परेशानी को दूर करने की प्रार्थना की है-

दोहा:

मेरी भववाधा हरौ, राधा नागरि सोय। जा तन की झाँई परे स्याम हरित दुति होय।।

अर्थ:

हिंदी साहित्य के महाकवि कवि बिहारीलाल जी राधा जी की स्तुति करते हुए कहते हैं कि मेरी सांसारिक बाधाएं वही चतुर राधा दूर करेंगी। जिनके शरीर की छाया पड़ते ही सांवले कृष्ण हरे रंग के प्रकाश वाले हो जाते हैं। अर्थात मेरे दुखों का हरण वही चतुर राधा करेंगी। जिनकी झलक दिखने मात्र से सांवले कृष्ण हरे अर्थात प्रसन्न जो जाते हैं।

क्या सीख मिलती है:

हमें ईश्वर पर भरोसा रखना चाहिए क्योंकि हमारी सभी कष्टों का निवारण ऊपर वाला ही करता है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 6 – Bihari ke Dohe 6

इस दोहे के माध्यम से महाकवि ने राधा-कृष्ण की सुंदर जोड़ी के बारे में व्याख्या की है-

दोहा:

चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न स्नेह गम्भीर। को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के बीर॥

अर्थ:

यह राधा-कृष्ण की सुंदर जोड़ी चिरंजीवी हो एक बैल की पुत्री हैं और दूसरा जोतने वाले का भाई इनमें गहरा प्रेम होना ही चाहिए।

क्या सीख मिलती है:

बिहारी लाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि जिस तरह से राधा-कृष्ण एक दूसरे के बिना अधूरे हैं उसी तरह पति-पत्नी एक-दूसरे के बिना अधूरे है। इसलिए पति-पत्नी के बीच राधा-कृष्ण की तरह ही प्यार होना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 7 – Bihari ke Dohe 7

इस दोहे में बिहारीलाल जी ने माता सीता के विरह के समय में चंद्रमा से संवाद की व्याख्या की है-

दोहा:

मैं ही बौरी विरह बस, कै बौरो सब गाँव। कहा जानि ये कहत हैं, ससिहिं सीतकर नाँव।।

अर्थ:

इस दोहे में बिहारीलाल जी कहते हैं कि मुझे लगता हैं कि या तो मैं पागल हूं या फिर पूरा गांव. मैंने बहुत बार सुना हैं और ये सभी लोग कहते हैं कि चंद्रमा शीतल हैं लेकिन तुलसीदास के दोहे के अनुसार माता-सीता ने इस चंद्रमा से कहा था कि मैं यहाँ विरह की आग में जल रही हूँ यह देखकर ये अग्निरूपी चंद्रमा भी आग की बारिश नहीं करता।

अगले पेज पर और भी दोहे हैं…

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 8 – Bihari ke Dohe 8

बिहारीलाल जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से कृष्ण रूप का सुंदर वर्णन किया है –

दोहा:

मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल। यहि बानिक मो मन बसौ सदा बिहारीलाल।।

अर्थ:

बिहारीलाल जी अपने इस दोहे में कहते हैं हे कान्हा, तुम्हारें हाथ में मुरली हो, सर पर मोर मुकुट हो तुम्हारें गले में माला हो और तुम पीली धोती पहने रहो इसी रूप में तुम हमेशा मेरे मन में बसते हो।

क्या सीख मिलती है:

श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे बिहारीलाल जी ने इस दोहे में अपने प्रिय कृष्ण के सुंदर रूप का वर्णन किया है जो कि वाकई प्रशंसनीय है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 9 – Bihari ke Dohe 9

श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे महाकवि बिहारीलाल जी ने इस दोहे में गोपियों द्धारा श्री कृष्ण की बांसुरी चुराए जाने का वर्णन किया है।

दोहा:

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करै, भौंहन हँसे, देन कहै नटि जाय॥

अर्थ:

इस दोहे में महान कवि बिहारी लाल जी कहते हैं कि गोकुल की गोपियां नटखट कान्हा की मुरली इसलिए छिपा देती हैं और आपस में हँसती हैं ताकि कान्हा के  मुरली मांगने के बहाने उन्हें कृष्ण से बातें करने का मौका मिल जाए। इसके साथ में गोपियाँ कृष्ण के सामने नखरें भी दिखा रही हैं। वे अपनी भौहों से तो कसमे खा रही हैं। लेकिन उनके मुँह से ना ही निकलता है।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी ने अपने इस दोहे में गोपियों का श्री कृष्ण के प्रति स्नेह को बताया है अर्थात इससे हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम किसी से सच्चे दिल से स्नेह करते हैं तो हमारे अंदर उनसे मिलने की चाहत होनी चाहिए और हमें उन मौकों की तलाश में रहना चाहिए जिससे हम अपने प्रिय से बात कर सकें।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 10 – Bihari ke Dohe 10

बिहारीलाल जी ने अपने इस दोहे में सुहागिन स्त्री की सुंदर आंखों की तारीफ का वर्णन किया है-

दोहा:

काजर दै नहिं ऐ री सुहागिन, आंगुरि तो री कटैगी गंड़ासा
अर्थ:

बिहारी के इस दोहे में अतिश्योक्ति का परिचय मिलता है, जैसे कि वह कह रहे हैं। हे सुहागवती अपनी आंखों में काजल मत लगा वरना तेरे नैन गड़ासे अर्थात चारा काटने के औजार जैसे कटीले हो जाएंगे।

क्या सीख मिलती है:

इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि सुहागवती स्त्री को बहुत ज्यादा सज-संवरकर नहीं रहना चाहिए क्योंकि उनका अत्याधिक सुंदर रूप भी पति का मोह भंग करता है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 11 – Bihari ke Dohe 11

इस दोहे के माध्यम से कवि ने एक प्रेमिका की अपने प्रेमी के प्रति प्रेम भावना को प्रकट करने की कोशिश की है। इस समाज में ऐसे भी कई लोग होते है जो सीधे अपने दिल की बात नहीं कह पाते और अपने दिल की बात अपने करीबियों की मद्द से अपने प्रेमी तक पहुंचाने की कोशिश करते हैं-

दोहा:

कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात। कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात॥

अर्थ:

कवि बिहारीलाल जी ने इस दोहे में एक प्रेमिका की मन की स्थिति का वर्णन किया जो दूर बैठे अपने प्रेमी के लिए सन्देश भेजना चाहती हैं लेकिन प्रेमिका का सन्देश इतना बड़ा हैं कि वह कागज पर समां नहीं पाएगा। लेकिन  संदेशवाहक से कहती हैं की तुम मेरे सबसे करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह देना।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी के इस दोहे से यह प्रेरणा मिलती है कि अगर किसी के लिए हमारे अंदर प्रेम है तो उसे जल्द ही उजागर कर देना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 12 – Bihari ke Dohe 12

समाज में कई ऐसे प्रेमी जोड़े देखने को मिलते हैं। जिन्हें बात करने के लिए लफ्जों की जरूरत नहीं होती है बल्कि आंखों से ही वे सारी बातें कर लेते हैं और आंखों ही आंखों में वे एक-दूसरे को रूठते मनाते भी हैं।

दोहा:

कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥

अर्थ:

इस दोहे में बिहारीलाल जी ने दो प्रेमियों के बीच में आँखों ही आँखों में होने वाली बातों को दर्शाया है। वो कहते हैं की किस तरह लोगो के भीड़ में होते हुए भी प्रेमी अपनी प्रेमिका को आँखों के जरिये मिलने का संकेत देता हैं और उसे कैसे प्रेमिका अस्वीकार कर देती हैं, प्रेमिका के अस्वीकार करने पर कैसे प्रेमी मोहित हो जाता हैं जिससे प्रेमिका रूठ जाती हैं।

जिसके बाद वे दोनों मिलते हैं और उनके चेहरे खिल उठते हैं लेकिन ये सारी बातें उनके बीच आंखों से होती हैं।

क्या सीख मिलती है:

जब कोई इंसान किसी से सच्चे दिल से प्यार करता है तो उसे बात करने के लिए शब्दों की जरूरत भी नहीं पड़ती क्योंकि दोनों में इतनी अच्छी बॉन्डिंग होती है कि वे आंखों से इशारे ही इशारे में दिल की बात कर लेते हैं।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 13 – Bihari ke Dohe 13

इस दोहे में कवि ने उस स्थिति का वर्णन किया है जब संकट के समय में लोग अपने आपसी मतभेद और ईर्ष्या को भूल जाते हैं और फिर एक साथ बैठते- उठते हैं।

दोहा:

कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।

अर्थ:

इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं।

कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि संकट के समय में हमें अपने आपसी मतभेदों को भूल जाना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए तभी हम एक साथ बैठकर किसी भी परेशानी का सामना कर सकते हैं क्योंकि एकता से ही हिम्मत मिलती है और परेशानी से निपटने की प्रेरणा भी।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 14 – Bihari ke Dohe 14

इस दोहे में कवि ने नायिका के सुंदरता का बखूबी वर्णन किया है और ये भी बताने की कोशिश की है कि किसी की सुंदरता को चित्रित नहीं किया जा सकता है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है-

दोहा:

लिखन बैठि जाकी सबी गहि गहि गरब गरूर।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।

अर्थ:

महाकवि बिहारीलाल जी इस दोहे में नायिका के अतिशय सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि नायिका के सौंदर्य का चित्रांकन करने को गर्वीले ओर अभिमानी चित्रकार आए लेकिन उन सबका गर्व चूर-चूर हो गया। क्योंकि कोई भी उसके सौंदर्य का वास्तविक चित्रण नहीं कर पाया दरअसल नायिका का सुंदर रूप हर पल बढ़ता ही जा रहा था, जिसका शब्दों में बखान करना बेहद मुश्किल है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 15 – Bihari ke Dohe 15

इस दोहे में महाकवि बिहारीलाल जी ने नायिका के अत्यंत सुंदर रूप की व्याख्या की है कि इसमें कवि ने नारी के शरीर की चमक की तुलना रत्न की चमक और दिये की रोश्नी से की है।

दोहा:

अंग-अंग नग जगमगत,दीपसिखा सी देह।
दिया बढ़ाए हू रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह।।

अर्थ:

नायिका के शरीर का हर एक अंग किसी रत्न की तरह जगमगा रहा है, उसका तन दीपक की शिखा की तरह झिलमिलाता है अतः दिया बुझा देने पर भी घर मे उजाला बना रहता है।

क्या सीख मिलती है:

अगर घर में सर्वगुण संपन्न और सुंदर नारी होगी तो वह कठिन से कठिन समय में ही परिवार की डोर को बांधे रहेगी और अंधेरे में भी प्रकाश की तरह काम करेगी जैसे कि दिया करता है।
बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 16 – Bihari ke Dohe 16

आज की दुनिया में कई लोग ऐसे हैं जो सिर्फ दिखाने के लिए भगवान की आराधना करते हैं या सिर्फ बाहरी मन से ही विशाल यज्ञ का आयोजन कर प्रभु के नाम की माला जपते रहते हैं और सोचते हैं कि ईश्वर उनकी प्रार्थना सुन लेगा। ऐसे ढोंगी लोगों के लिए महाकवि बिहारीलाल जी ने अपने इस दोहे में बड़ी बात कही है-

दोहा:

जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥

अर्थ:

आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है। जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करनी चाहिए क्योंकि अगर हम सच्चे मन से जो भी अपने प्रभु की आराधना करता है , उसकी मुराद जरूर पूरी होती है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 17 – Bihari ke Dohe 17

जयपुर के राजा जयसिंह जब विवाह के बाद पूरी तरह से अपने नवविवाहित पत्नी के प्रेम में डूबे गए थे और उनका ध्यान पूरी तरह से राज्य के कामकाज से हट गया था जिससे राजा के मंत्री भी काफी चिंता में रहने लगे थे जब महाकवि बिहारी लाल जी ने राजा जयसिंह को यह दोहा सुनाया था जो कि इस प्रकार है-

दोहा:

नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास यहि काल।
अली कली में ही बिन्ध्यो आगे कौन हवाल।।

अर्थ:

न ही इस काल मे फूल में पराग है ,न तो मीठी मधु ही है। अगर अभी भौरा फूल की कली में ही खोया रहेगा तो आगे न जाने क्या होगा। राजा जयसिंह अपने विवाह के बाद रास क्रीड़ा में अपना पूरा समय व्यतीत करने लगे थे। उनका अपने राज्य की तरफ से ध्यान हट गया था, तब बिहारी लाल जी ने यह दोहा सुनाया। इससे राजा फिर से अपने राज्य को ठीक प्रकार से देखने लगे।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारी लाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपने भविष्य को सोचकर चलना चाहिए और अपनी इंद्रियों को वश में रखना चाहिए क्योंकि अति किसी भी चीज की बेकार ही होती है। किसी से अत्याधिक प्रेम भी नुकसान का कारण बन सकता है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 18- Bihari ke Dohe 18

समाज में ऐसे कई लोग हैं जिनके पास अचानक से पैसा आते ही वे घमंडी बन जाते हैं या फिर अभिमान में चूर होकर वे सभी को खुद से कम आंकने लगते हैं। ऐसे लोगों के लिए कवि बिहारी लाल जी इस दोहे में बड़ी बात कही है-

दोहा:

कनक कनक ते सौं गुनी मादकता अधिकाय।
इहिं खाएं बौराय नर, इहिं पाएं बौराय।।

अर्थ:

सोने में धतूरे से सौ गुनी मादकता अधिक है। धतूरे को तो खाने के बाद व्यक्ति पगला जाता है। सोने को तो पाते ही व्यक्ति पागल अर्थात अभिमानी हो जाता है।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हमारे पास अचानक से पैसा आए तो हमें घमंड नहीं करना चाहिए बल्कि अपनी जमीनी स्तर पर जुड़कर हमेशा सोचना चाहिए।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 19 – Bihari ke Dohe 19

महाकवि बिहारीलाल जी ने इस दोहे में सच्चे मन से प्रेम करने वालों की व्यथा सुनाई है इसके साथ ही यह बताने की भी कोशिश की है कि कोई अगर अपने कृष्ण की भक्ति सच्चे मन से करता है तो निश्चत ही वह उनके प्यार में डूबकर और भी ज्यादा निर्मल और पवित्र होता जाता है-

दोहा:

या अनुरागी चित्त की,गति समुझे नहिं कोई।
ज्यौं-ज्यौं बूड़े स्याम रंग,त्यौं-त्यौ उज्जलु होइ।।<

अर्थ:

इस प्रेमी मन की गति को कोई नहीं समझ सकता। जैसे-जैसे यह कृष्ण के रंग में रंगता जाता है, वैसे-वैसे उज्ज्वल होता जाता है अर्थात कृष्ण के प्रेम में रमने के बाद ज्यादा निर्मल हो जाते हैं।

क्या सीख मिलती है:

जो लोग भगवान कृष्ण की सच्चे मन से आराधना करते हैं और उनकी भक्ति में लीन रहते हैं। उन लोगों का विश्वास प्रभु पर दिन पर दिन और भी ज्यादा बढ़ता जाता है और फिर वे कृष्ण के प्रेम रस में डूबकर और भी ज्यादा निर्मल हो जाते हैं।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 20 – Bihari ke Dohe 20

इस दोहे के माध्यम से महाकवि बिहारी लाल जी ने श्री कृष्ण से प्रेम करने वाली एक ऐसी नायिका की व्यथा सुनाने की कोशिश की है जो कि अपने गिरधर गोपाल के दर्शन के लिए हमेशा ही लालायित रहती हैं और अपने प्रभु की आराधना में लीन रहती है

दोहा:

जसु अपजसु देखत नहीं देखत सांवल गात।
कहा करौं, लालच-भरे चपल नैन चलि जात।।

अर्थ:

नायिका अपनी विवशता प्रकट करती हुई कहती हैं कि मेरे नेत्र यश-अपयश की चिंता किये बिना मात्र साँवले-सलोने कृष्ण को ही निहारते रहते हैं। मैं विवश हो जाती हूँ कि क्या करूं क्योंकि कृष्ण के दर्शनों के लालच से भरे मेरे चंचल नयन बार -बार उनकी ओर चल देते हैं।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारीलाल जी ने इस दोहे में बड़े सी श्री कृष्ण के प्रति प्रेम का ह्रदयस्पर्शी वर्णन किया है जो कि वाकई सराहनीय है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 21 – Bihari ke Dohe 21

इस दोहे में कवि ने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बेहद सुंदर तरीके से बताने की कोशिश की है-

दोहा:

कीनैं हुँ कोटिक जतन अब कहि काढ़े कौनु।
भो मन मोहन-रूपु मिलि पानी मैं कौ लौनु।।

अर्थ:

जिस प्रकार पानी मे नमक मिल जाता है,उसी प्रकार मेरे हृदय में कृष्ण का रूप समा गया है। अब कोई कितना ही यत्न कर ले, पर जैसे पानी से नमक को अलग करना असंभव है। वैसे ही मेरे हृदय से कृष्ण का प्रेम मिटाना असम्भव है।

क्या सीख मिलती है:

इसमें कवि ने श्री कृष्ण के प्रति अपनी भावना को प्रकट किया है और कहा है कि चाहे कोई कितनी भी कोशिश क्यों नहीं कर ले लेकिन कोई भी उनके हदय से श्री कृष्ण के प्रति प्रेम को कम नहीं कर सकता है और न ही कोई उन्हें श्री कृष्ण की भक्ति करने से रोक सकता है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 22 – Bihari ke Dohe 22

जो लोग सिर्फ धन को महत्व देते हैं या फिर धन को कमान के पीछे पूरी जिंदगी भर लगे रहते हैं। उन लोगों के लिए बिहारी लाल जी ने इस दोहे में कहा है कि-

दोहा:

कोऊ कोरिक संग्रहौ, कोऊ लाख हज़ार।
मो संपति जदुपति सदा,विपत्ति-बिदारनहार।।

अर्थ:

बिहारी जी, श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुए कहते हैं कि कोई व्यक्ति करोड़ एकत्र करें या लाख-हज़ार, मेरी दृष्टि में धन का कोई महत्त्व नहीं है। मेरी संपत्ति तो मात्र यादवेन्द्र श्रीकृष्ण हैं। जो सदैव मेरी विपत्तियों को नष्ट कर देते हैं।

क्या सीख मिलती है:

महाकवि बिहारी लाल जी ने इस दोहे में श्री कृष्ण के प्रति उनके अटूट प्रेम और विश्वास की व्याख्या की है और बताया है कि श्री कृष्ण की साधना मात्र से खुद व खुद सभी परेशानियों का हल हो जाता है।

बिहारीलाल जी का दोहा नंबर 23 – Bihari ke Dohe 23

जो लोग लालची होते हैं, ऐसे लोगों की आदत हर किसी के सामने हाथ फैलाने की हो जाती है और फिर उनकी बुद्धि भी काम नहीं करती जिसके चलते वे समझदार और बुद्धिहीन में ही फर्क नहीं कर पाते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए बिहारीलाल जी ने यह दोहा लिखा है-

दोहा:

घरु-घरु डोलत दीन ह्वै,जनु-जनु जाचतु जाइ।
दियें लोभ-चसमा चखनु लघु पुनि बड़ौ लखाई।।

अर्थ:

लोभी व्यक्ति के व्यवहार का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि लोभी ब्यक्ति दीन-हीन बनकर घर-घर घूमता है और प्रत्येक व्यक्ति से याचना करता रहता है। लोभ का चश्मा आंखों पर लगा लेने के कारण उसे निम्न व्यक्ति भी बड़ा दिखने लगता है, अर्थात लालची व्यक्ति विवेकहीन होकर योग्य-अयोग्य व्यक्ति को भी नहीं पहचान पाता।

क्या सीख मिलती है:

हमें जरूरत से ज्यादा लालची नहीं बनना चाहिए क्योंकि लालची इंसान, लोभ के चक्कर में समझदार और बुद्धिहीन व्यक्ति में भी फर्क नहीं कर पाता है। वहीं ज्यादा लालची लोग अपने जीवन में कभी खुश भी नहीं रह सकते क्योंकि हमेशा और अधिक पाने की चाह में उन्हें कभी संतोष नहीं मिलता है।

निष्कर्ष-

महाकवि बिहारीलाल जी ने अपने दोहों – Bihari ke Dohe के माध्यम से जीवन के मूल्यों को बताने की कोशिश की है वहीं अगर सही मायने में अगर कोई कवि बिहारीलाल जी के दोहों का अनुसरण करें तो वह अपनी जिंदगी में सफलता हासिल कर सकता है और आगे बढ़ सकता है।

और भी दोहे पढ़िये:

Note : अगर आपको हमारे Bihari ke Dohe in Hindi अच्छे लगे तो जरुर हमें Facebook और Whatsapp पर Share कीजिये। Note : फ्री E-MAIL Subscription करना मत भूले। These Bihari Lal ke Dohe used on : Bihari ke Dohe in Hindi language, Bihari ke Dohe in Hindi, Bihari ke Dohe, बिहारी के दोहे।

Exit mobile version

https://www.neinver.com/

https://www.tavernakyclades.com/

https://www.kidsfunhouse.com/

https://agungbatin.mesuji-desa.id/batin/

https://butcherbar.com/

https://bukoposo.desa.id/poso/

https://nekretnine.mirjanamikulec.com/

https://famousfidorescue.org/

https://eadvocat.rd.ua/

https://miep.spb.ru/

https://www.medswana.co.bw/