उत्तराखंड का एक अनोखा मंदिर चितई गोलू देवता मंदिर | Chitai Golu Devta Temple

Chitai Golu Devta Temple

भारत सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का देश है ये हम सभी जानते है इसलिए आप भारत में कही भी जांए, भारत की प्राकृति खूबसूरती में, ऐतिहासिक इमारत में, और मंदिरों में भारतीय संस्कृति के अद्भुत इतिहास की झलक देखने को मिल ही जाती है।

भारत में लोग आस्था में बहुत विश्वास करते है यही कारण है कि भारत के हर राज्य में धार्मिक स्थान है जिनका अपना अलग महत्व और अलग इतिहास है।

भारत के उत्तराखंड राज्य को देवभूमि के नाम से जाना जाता है यहां पर जगह – जगह पर भगवान शिव और पार्वती की अलग – अलग रुपों में पूजा की जाती है।

उत्तराखंड में इसी आस्था से जुड़े कई हजारों साल पुराने मंदिर है जिनमें से एक उत्तराखंड के अल्मोडा जिला का चैतई गोलू देवता का मंदिर भी है जिसका इतिहास और इस मंदिर से जुड़ी आस्था दोनों ही दिलचस्प है।

Chitai Golu Devta Temple

उत्तराखंड का एक अनोखा मंदिर चितई गोलू देवता मंदिर – Chitai Golu Devta Temple

आपने बहुत से अद्भुत मंदिर देखे होंगे जिनके से जुड़ी आस्था भी आपको हैरान करती होगी। लेकिन क्या आपने कभी कोई ऐसा मंदिर देखा है जहां पर स्टंप पेपर पर लिखकर न्याय मांगा जाता हो, और न्याय मिल जाने पर घँटी चढ़ाई जाती हो।

अगर आप अल्मोड़ा के चितई गोलू देवता मंदिर में आएंगे तो आप देंखेगें इस मंदिर में चारों तरफ ढेंरो स्टंप पेपर पर लिखी अर्जियां बंधी है। साथ ही हजारों की संख्या में घंटियां भी बंधी हैं।

ये दोंनो ही इस ओर इशारा करती है कि इस मंदिर में लोगों की कितनी आस्था है। दरअसल गोलू देवता को भगवान शिव के भैरव रुप का अवतार माना जाता है।

यहां की लोककथाओं के अनुसार जिस व्यक्ति को कहीं न्याय नहीं मिलता उसे यहां न्याय मिलता है। और यही कारण है कि इस मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी हुई है इस मंदिर से एक आस्था ये भी जुड़ी है कि जो भी पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में बने मां काली के मंदिर में जाना चाहता है उसे पहले यहां पर आना पड़ता है वरना उनकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाती।

चितई गोलू देवता मंदिर का इतिहास – Chitai Golu Devta Temple History

गोलू देवता का मंदिर अल्मोड़ा से आठ किलोमटीर दूर पिथौरागढ़ के लिए जाने वाले हाइवे पर बना हुआ है माना जाता है कि इस मंदिर को चंद वंश के एक सेनापति ने 12 वीं शताब्दी में करवाया था।

हालांकि इसके कोई साक्ष प्रमाण मौजूद नहीं है कि इस मंदिर को असल में कब बनाया गया था हालांकि यहां के पुजारियां के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 19 शताब्दी से पहले ही हो चुका था।

कुछ ऐतिहासिक कहानियों के अनुसार गोलू देवता चंद वंश के काल में एक जनरल थे जिनकी मृत्यु के बाद उनके समान में ये मंदिर बनाया गया था। हालांकि यहां कि लोककथाएं इसे बिल्कुल अलग है।

चितई गोलू देवता के मंदिर की लोककथा- Golu Devta Story

माना जाता है कि कुमाऊं क्षेत्र के राजा झॉलराय के बेटे हलराय की सात पत्नियां थी लेकिन इसके बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं थी।

संतान प्राप्त के लिए उन्होनें बहुत पूजा पाठ और तप किया जिसके बाद भगवान भैरव ने हलराय के सपने में आकर उन्हें उनके पुत्र में रुप में जन्म लेने का वचन दिया लेकिन भगवान भैरव ने साथ ही ये बात भी कही कि उनकी सातों रानियों के गृभ से वो जन्म नहीं लेंगे।

इसके बाद एक दिन शिकार के दौरान हलराय की मुलाकात कालिंका नाम की युवती से हुई जिन्हें देखते ही राजा को उनसे प्रेम हो गया कालिंका और हलराय के विवाह के बाद कांलिका गृभवती हुई लेकिन कालिंका ने एक शिशु की जगह सिलबट्टे को जन्म दिया।

हालांकि हकीकत कुछ ओर थी माना जाता है राजा की सातों रानियां कालिंका से जलती थी जिस वजह से उन्होनें बच्चे की जगह सिलबट्टे को रख दिया और राजा को यकीन दिलाया कि कालिंका मनहूस है।

जिसके बाद उसे सूखी रोटी दी जाने लगी और राजमहल से दूर रखा जाने लगा। वही दूसरी तरफ सात रानियों ने बच्चे को मारने की बहुत कोशिशे की लेकिन बच्चा हर बार बच जाता था। जिसके बाद उन्होनें बच्चे को पानी में बहा दिया।

जो एक धीवर नाम के एक मछुआरे को मिला धीवर और उसकी पत्नी माना की भी कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होनें उसे भगवान का आशीर्वाद समझकर अपना लिया। और बच्चे का नाम गोरिया रखा। बच्चा कुछ बड़ा हुआ तो उसे अपने साथ ही घटनाएं याद आने लगी।

गोरिया ने अपने पिता धीवर से एक दिन घोड़े की मांग की। लेकिन धीवर गरीब था इसलिए उसने अपने बच्चे का मन रखने के लिए एक काठ का घोड़ा बनाया। गोरिया अपने काठ के घोड़े को देख खुश हुआ।

एक दिन गोरिया अपने काठ के घोड़े को नदी किनारे पानी पिला रहा था वहीं हलराल की 7 रानियां और गोरिया की मां कालिंका भी स्नान करने आई थी।

सातों रानियों ने गोरिया का ये कहकर मजाक उड़ाया कि वो कैसा मूर्ख बच्चा है जो काठ के घोड़े को पानी पिला रहा है। इस पर गोरिया ने जवाब दिया कि अगर रानी कालिंका सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो काठ का घोड़ा पानी क्यों नही पी सकता?

जिस बात को समझने में राजा हलराय और रानी कालिंका को समझने में इतने वर्ष लग गए उस बात को एक 7 सात साल के बच्चे ने अपनी चतुराई से सबके बीच रख दिया।

इसके बाद राजा हलराय़ को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने माफी मांग गोरिया को अपना पुत्र स्वीकारा। इसके बाद जब गोरिया राजा बना तो उसने अपने राज्य में कभी अन्याय नहीं होने दिया।

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