बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व-विजयादशमी / दशहरा

Dussehra Information in Hindi

दशहरा का पर्व हिन्दुओं के प्रमुख पर्वों में से एक है, जिसे पूरे भारत में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर लोगों में भारी उत्साह रहता है।

इस पर्व को मनाने के पीछे कई पौराणिक और धार्मिक कथाएं जुड़ी हुई हैं, इसलिए इस पर्व का अपना एक अलग महत्व है, भारत में इस पर्व को अलग-अलग जगह अपनी-अपनी रीति-रिवाज और परंपरा के साथ मनाया जाता है।

दशहरा के त्योहार की तैयारियां लोग कई दिन पहले से ही करने लगते हैं, इसलिए इस मौके पर अलग ही रौनक देखने को मिलती है, तो आइए जानते हैं, दशहरा के पर्व से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी –

बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व-विजयादशमी / दशहरा – Dussehra Information in Hindi

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दशहरा कब और क्यों मनाया जाता है ?

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक का यह पावन पर्व आश्विन महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। आश्विन मास की नवरात्रों के अगले दिन यानि की रामनवमी के अगले दिन इस पर्व को पूरे भारतवर्ष में धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

विजयादशमी से नौ दिन पहले माता दुर्गा की उपासना की जाती है। वहीं दशहरा के ठीक 20 दिन बाद दीपावली का पर्व मनाया जाता है। आपको बता दें कि साल 2019 में दशहरा का पर्व 8 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

विजयादशमी के इस पर्व को मनाने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं –

दशहरा से जुड़ी प्रचलित पौराणिक कथाएं

  • भगवान राम द्धारा रावण का वध करने से जुड़ी कथा

दशहरा के पर्व को मनाने के पीछे सबसे प्रचलित और प्रसिद्ध पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान राम ने इसी दिन महाअसुर रावण का वध कर उसके अहंकार का विनाश किया था, बड़े-बड़े हिन्दू शास्त्रों और धर्मग्रंथों के मुताबिक भगवान विष्णु ने महाअसुर रावण के पापों का अंत करने के भगवान राम का अवतार लिया था।

महाकाव्य रामायण के अनुसार, जब भगवान राम के पिता राजा दशरथ ने उन्हें अपनी पत्नी कैकयी के कहने पर 14 साल के वनवास के लिए भेजा था, तब उनके साथ उनकी पत्नी माता सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी गए थे और वनवास के आखिरी साल में महापापी राक्षस रावण ने माता सीता की सुंदरता से मोहित होकर छल से उनका अपहरण कर लिया था।

जिसके बाद भगवान राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया था। इस युद्ध में भगवान राम का वानर सेना, रावण के भाई विभीषण और हनुमान जी ने साथ दिया था।

आपको बता दें कि महाबलशाली एवं महापापी रावण के पास न सिर्फ  महादैत्यी शक्तियां थीं, बल्कि ज्ञान का अपार भंडार भी था, जिसका उसे काफी अंहकार था, उसके इसी अंहकार का सर्वनाश करने और माता सीता को उससे वापस लाने के लिए भगवान राम ने रावण से युद्ध कर उसका वध कर दिया था।

और वह दिन आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि का दिन था और तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के पर्व दशहरा के रुप में मनाया जाने लगा है।

  • माता दुर्गा द्धारा महिषासुर का वध करने से जुड़ी कथा

विजयादशमी के पर्व को मनाने के पीछे एक अन्य प्रसिद्ध कथा के मुताबिक महिषासुर नाम के एक राक्षस की उपासना से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दिया था।

इस वरदान को पाकर महिषासुर ने इसका गलत तरीके से इस्तेमाल करना शुरु कर दिया, उसने  बेकसूर और निर्दोषों पर अत्याचार करना शुरु कर दिए एवं अग्नि, वायु, सूर्य, चंद्रमा, इंद्र, यम, वरुण एवं अन्य देवताओं से उनके अधिकार छीन लिए, इसके साथ ही इंद्रलोक और समस्त पृथ्वीलोक पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया।

वहीं ब्रह्रादेव के वरदान के मुताबिक असुरों के राजा महिषासुर का ना कोई पुरुष और ना ही कोई देवता उसका वध कर सकते थे। जिसके चलते महिषासुर के पाप और अत्याचार बढ़ते जा रहे थे, जिससे रुष्ट होकर सभी देवताओं ने मां दुर्गा की रचना की और मां दुर्गा को कुछ दैवीय शक्तियों समेत अपने अस्त्र-शस्त्र दे दिए, जिससे वह और अधिक शक्तिशाली और बलवान हो गईं।

इसके बाद देवी दुर्गा ने करीब नौ दिन तक महापापी महिषासुर के साथ युद्ध किया और दशमी के दिन महिषासुर का वध कर विजय प्राप्त की। इसलिए तभी से इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के पर्व विजयादशमी के रुप में मनाया जाना लगा है।

वहीं दशहरा के पर्व से नौ दिन पहले नवरात्रों के दौरान देवी दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा-उपासना की जाती है। देवी दुर्गा द्धारा महिषासुर का विनाश करने के कारण उन्हें मां महिषासुरमर्दिनी नाम से भी जाना जाता है।

इसके अलावा भी इस पर्व से पांडवों के वनवास एवं देवी सती के अग्नि में समां जाने जैसी पौराणिक कथाएं जुड़ी हुईं हैं।

दशहरा का महत्व

दशहरा का पर्व भारत में अपने अलग-अलग रीति-रिवाज, परंपरा और संस्कृति के साथ मनाया जाता है, हालांकि इस त्योहार को मनाने के पीछे सभी का एक ही उद्देश्य होता है – अपने अंदर की बुराई को खत्म कर सभी के साथ मिलजुल कर और प्रेम के साथ रहना।

इस त्योहार का बड़े, बच्चे, बुजुर्ग, युवाओं और महिलाओं सभी के लिए अलग-अलग महत्व है।

विजयादशमी के पर्व को मुख्य रुप से बुराई  पर अच्छाई की जीत के पर्व के रुप में मनाया जाता है, हालांकि विजय और जश्न की मान्यता सभी के लिए अलग-अलग है, जैसे कि किसानों के लिए यह पर्व नई फसलों का पककर तैयार होने का पर्व है तो बच्चों के लिए यह मौज-मस्ती का पर्व है, जबकि सरहद पर तैनात वीर जवानों के लिए अपने दुश्मन पर जीत के जश्न का पर्व है। इस तरह इस पर्व में सभी के विजय और जश्न की मान्यताएं अलग-अलग हैं।

दशहरा का पर्व कैसे मनाया जाता है

दशहरा के पर्व की धूम पूरे भारत में दिखाई देती है।  इस दौरान अस्त्रों, शस्त्रों, वाहनों, औजारों की पूजा की जाती है। इसके अलावा दशहरा के पर्व पर कई बड़े उत्सव, मेले और कार्यक्रमों का आयोजन होता है। कई जगहों पर तो पूरे 10 दिन तक दशहरा का उत्सव मनाया जाता है।

इस मौके पर भव्य मेलों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें कई अलग-अलग क्षेत्रों के दुकानदारों द्धारा स्टॉल लगाए जाते हैं, बच्चों के खेल – कूद और मनोरंजन के लिए झूलें लगाए जाते हैं एवं सर्कस आदि का आयोजन किया जाता है।

दशहरा पर जगह-जगह पर रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें रामायण के मुख्य पात्र भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान आदि का किरदार कलाकारों द्धारा निभाया जाता है, जबकि रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाए जाते हैं, फिर नाट्यरूपी रामलीला के अंत में भगवान राम द्धारा रावण का वध प्रदर्शित किया जाता है, जिसके बाद पटाखों की गूंज के साथ रावण का पुतला दहन किया जाता है। इस तरह इस पर्व पर अलग ही माहौल होता है।

वहीं रामलीला को देखने के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटती है और इसको लेकर लोगों में काफी उत्साह भी देखने को मिलता है।

प्राचीन समय में दशहरा के दिन लोग एक-दूसरे से मिलने उनके घर जाते थे, जिससे लोगों में आपसी प्रेम और भाईचारा बढ़ता था, लेकिन आज लोग इंटरनेट से मैसेज कर ही एक-दूसरे को इस पर्व की बधाई दे देते थे।

वक्त के साथ-साथ अन्य त्योहारों की तरह दशहरा के पर्व ने भी आधुनिकता का रुप ले लिया है, जिसके चलते धीमे-धीमे इसका महत्व कम होता जा रहा है।

इसलिए हम सभी को इस त्योहार के महत्व और इसकी वास्तविकता को समझकर पूरी सादगी और श्रद्धा के साथ इस पर्व को मनाना चाहिए, क्योंकि यह त्योहार न हमारे अंदर प्रेम और सदाचार की भावना विकसित करते हैं, बल्कि हमें अपनी शक्ति और कर्तव्यों का बोध करवाते हैं, इसके साथ ही देश की आर्थिकी को बढाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है।

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