Site icon India's beloved learning platform

भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग- गुप्त साम्राज्य

Gupta Dynasty in Hindi

गुप्त काल को भारतीय इतिहास के स्वर्णिम युग माना जाता है। तीसरी सदी के अंत में इस साम्राज्य की स्थापना श्री गुप्त ने ही की थी। इस साम्राज्य से ही मंदिरों का निर्माण, बाल विवाह आदि की परंपरा शुरु हुई थी, साथ ही इस युग में सबसे अधिक सोने के सिक्के बनाए जाते थे।

इसके अलावा पंचतंत्र जैसे महान ग्रंथ की रचना भी इस युग में हुई थी, और गुप्त काल से कई महान रचनाकारों और विद्धानों का संबंध भी रहा है। इतिहासकारों के मुताबिक गुप्त वंश की शुरुआत उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी से हुआ था।

गुप्त वंश का इतिहास में अपना एक अलग महत्व है तो आइए जानते हैं इसकी उत्पत्ति, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक स्थिति एवं पतन के कारण के बारे में –

भारतीय इतिहास का स्वर्णिम युग- गुप्त साम्राज्य – Gupta Dynasty in Hindi

Gupta Dynasty in Hindi

गुप्त वंश की उत्पत्ति-  Origin Of Gupta Dynasty

गुप्त वंश की उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत हैं, ऐसा माना जाता है कि श्री गुप्त ने गुप्त वंश की स्थापना की थी। मौर्य काल के बाद  गुप्त काल का उदय 275 ईसवी में गुप्त वंश की स्थापना की गई थी।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस वंश की उत्पत्ति शुद्र तथा निम्नजाति से हुई थी, जबकि कुछ विचारकों क मानना है कि गुप्त वंश की उपत्ति ब्रह्मणों से हुई थी।

गुप्त वंश का शासनकाल – Gupta Empire Reign

श्रीगुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच गुप्त ने राजगद्दी संभाली। कुछ ऐतिहासिक अभिलेखो और ग्रंथों में घटोत्कच को गुप्त वंश का प्रथम शासक बताया गया है

घटोत्कच के बाद उसके पुत्र चन्द्र्गुप्त सिंहासन पर बैठा । उन्होंने अपने शासनकाल में कई महान काम किए। अपने महान कामों के लिए उन्हें महाराजधिराज की उपाधि से भी नवाजा गया था।

इतिहास के कई अभिलेखों में गुप्त साम्राज्य के प्रथम और महान शासक चन्द्रगुप्त प्रथम को माना जाता है। इसके साथ ही उन्हें  संवत की शुरुआत करने का भी क्रेडिट किया  जाता  है।

इसके अलावा सिक्कों के प्रचलन की प्रथा भी चन्द्रगुप्त प्रथम में अपने शासनकाल में शुरु की  थी।

गुप्त वंश के महान सम्राट चन्द्रगुप्त के बाद उनके पुत्र समुद्रगुप्त राजसिंहान पर आसीन हुए। उन्होंने अपने शासनकाल में गुप्त साम्राज्य का काकी विस्तार किया उन्होंने बंगाल की खाड़ी से लेकर पश्चिम में स्थित पूर्व मालवा तक और उत्तर में हिमालय से लेकर, दक्षिण में विंध्य पर्वत तक अपना साम्राज्य फैला लिया। समुद्रगुप्त एक महान शासक होने के साथ-साथ एक महान कवि और संगीतकार भी था, जिसे उसकी महान नीतियों की वजह से भारत का नेपोलियन भी कहा जाता था।

समुद्रगुप्त के बाद चन्द्रगुप्त द्धितीय गुप्त वंश की राजगद्दी पर आसीन हुए, उन्होंने विक्रमादित्य और देवगुप्त के नाम से भी जाना जाता था, उन्होंने उन्होंने करीब 40 सालों कुशलतापूर्वक राजगद्दी संभाली, इस दौरान न सिर्फ उन्होंने गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया, बल्कि साहित्य और कला को  भी जमकर बढ़ावा दिया।

उनके युग को भारतीय कला और साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है। इसके साथ ही इसे भारत के इतिहास का भी स्वर्णिम युग माना गया है।

विक्रमादित्य ने अपने विशाल साम्राज्य उत्तर में हिमालय के पहाड़ी इलाकों से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के तटों तक और पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ था। चन्द्रगुप्त द्दितीय के समय उनकी पहली राजधानी पाटलिपुत्र थी और दूसरी राजधानी उज्जैन थी।

साहित्य के महान एवं सबसे विद्धान कवि कालिदास जी चन्द्रगुप्त द्धितीय के समय उनके दरबार में शामिल थे।  इसके अलावा महान चिकित्सक धन्वंतरि भी उनके दरबारी थे। यही नहीं चन्द्र गुप्त द्धितीय ने ही महरौली स्थित राजचन्द्र के लोहस्तंभ को भी बनवाया था।

विक्रमादित्य के बाद कुमारगुप्त प्रथम ने गुप्त साम्राज्य का सिंहासन संभाला। उन्होंने अपने शासनकाल में विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की। कुमार गुप्त प्रथम ने अपने पिता चन्द्रगुप्त द्धितीय की तरह ही अपने शासनकाल में राज्य का जमकर प्रचार प्रसार किया और राज्य को एक नई दिशा  दी।

कुमारगुप्त की मौत के बाद उनके पुत्र स्कंदगुप्त गुप्त साम्राज्य की राजगद्दी पर बैठे। उन्होंने विरोधी आक्रमणकारियों से अपने राज्य की सुरक्षा की और सुव्यवस्था का पूरा ध्यान रखा।

स्कंदगुप्त के बाद गुप्तवंश का कोई भी उत्तराधिकारी अपना कोई खास प्रभुत्व नहीं जमा सके, इसलिए उनके बारे में इतिहास में ज्यादा कुछ उल्लेखित नहीं है। हलांकि, इस साम्राज्य के अंतिम शासक विष्णुगुप्त से संबंधित जानकारी का प्रमाण इतिहास में देखने को मिलता है।

गुप्त वंश के आय के प्रमुख स्त्रोत-

गुप्त कालीन जातीय व्यवस्था एवं धार्मिक स्थिति

गुप्तकालीन समाज 4 अलग-अलग जातियों में बंटी हुई थी।

महान विद्दान कौटिल्य (चाणक्य) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक अर्थशास्त्र और भारतीय गणितत्र एवं महान खगोल शास्त्री वारहमिहिर ने अपनी पुस्तक वृहसंहिता में गुप्तकाल में चार अलग-अलग जातियों का उल्लेख किया है।

वहीं अगर गुप्तकाल की धार्मिक स्थिति की बात की जाए तो इस दौरान ब्रहाण धर्म और हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का समय माना जाता है। इस काल में भी मूर्ति पूजा और ईश्वरीय भक्ति को महत्व दिया गया था। इस दौरान शैव व वैष्णव सम्प्रदाय प्रचलन में थे।

गुप्तकाल में कला और संस्कृति – Gupta Dynasty Culture

गुप्तकाल को  कला का स्वर्णिम युग माना गया है। इस दौरान ही कला की कई विधाओं जैसे चित्रकला, स्थापत्य कला, मृदभंड कला आदि को महत्व दिया गया। इसके साथ ही बेहद सुंदर मंदिर बनवाए गए।

इस दौरान ही मध्य प्रदेश के तिगवा में स्थित महाप्रसिद्ध विष्णुमंदिर, मध्य प्रदेश के नागोद में शिव मंदिर, उत्तरप्रदेश के झांसी में दशावतार मंदिर आदि का निर्माण किया गया, जिनकी सुंदर बनावट और कला की प्रशंसा आज भी की जाती है।

इसके अलावा गुप्त काल, साहित्यिक रुप से समृद्ध माना जाता है। इसे संस्कृत के साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। इसके अलावा इस दौरान भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया गया।

गुप्तवंश के पतन क्यों हुआ – Why did the Gupta Empire Collapse

गुप्तवंश के पतन को लेकर इतिहासकारों के अलग-अलग मत है, ऐसा माना जाता है कि परिवारिक कलह और बार-बार विदेशी आक्रमण की वजह से गुप्तवंश का पतन हो गया। ऐसा भी कहा जाता है कि ह्रूणों द्धारा आक्रमण भी इसके पतन का मुख्य कारण है।

Exit mobile version

https://www.neinver.com/

https://www.tavernakyclades.com/

https://www.kidsfunhouse.com/

https://agungbatin.mesuji-desa.id/batin/

https://butcherbar.com/

https://bukoposo.desa.id/poso/

https://nekretnine.mirjanamikulec.com/

https://famousfidorescue.org/

https://eadvocat.rd.ua/

https://miep.spb.ru/

https://www.medswana.co.bw/