प्रकृति पर कुछ कविताएँ | Hindi Poems on Nature

Hindi Poems on Nature

प्रकृति, एक मां की तरह बिना कुछ मांगे ही, हमारी सभी जरूरतों को पूरा ख्याल रखती है। एक तरीके से प्रकृति हमारी जीवनदायनी है, जो न सिर्फ हमें अपने आंचल में समेटकर , हमें भोजन, पानी , शुद्ध हवा, देती है , बल्कि मुफ्त में ढेर सारे संसाधन उपलब्ध करवाती है, जिसके इस्तेमाल से हमारा जीवन बेहद आसान हो जाता है।

लेकिन अफसोस इस बात का है, आज व्यक्ति अपने स्वार्थ के चलते प्रकृति से जमकर खिलवाड़ कर रहा है, जिसके चलते भविष्य में संकट गहरा सकता है।

इसलिए प्रकृति के महत्व को समझाने के लिए बच्चों को स्कूलों में प्रकृति पर कुछ कविताएं (Hindi Poems on Nature) पढ़ाई जाती है, जिससे वे अपनी प्रकृति को बचाने के लिए सजग हो सकें।

Hindi Poems on Nature

प्रकृति पर कुछ कविताएँ – Hindi Poems on Nature

ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये हवाओ की सरसराहट
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट
ये समुन्दर की लहरों का शोर
ये बारिश में नाचते सुंदर मोर
कुछ कहना चाहती है हमसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये खुबसूरत चांदनी रात
ये तारों की झिलमिलाती बरसात
ये खिले हुए सुन्दर रंगबिरंगे फूल
ये उड़ते हुए धुल
कुछ कहना चाहती है हमसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये नदियों की कलकल
ये मौसम की हलचल
ये पर्वत की चोटियाँ
ये झींगुर की सीटियाँ
कुछ कहना चाहती है हमसे
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे

Prakriti par Kavita

दोस्तों, हम जानते हैं की प्रकृति के बिना हम कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति बहुत सी खूबसूरत चीजे हैं जिन्हें देखकर हर कवी को कुछ न कुछ कविताएँ दिमाग में आ ही जाता हैं आज हम आपके लिए प्रकृति पर कुछ कविताएँ – Hindi Poems on Nature लायें हैं आपको जरुर पसंद आयेंगें –

कुदरत

हे भगवान् तेरी बनाई यह धरती , कितनी ही सुन्दर
नए – नए और तरह – तरह के
एक नही कितने ही अनेक रंग !
कोई गुलाबी कहता ,
तो कोई बैंगनी , तो कोई लाल
तपती गर्मी मैं
हे भगवान् , तुम्हारा चन्दन जैसे व्रिक्स
सीतल हवा बहाते
खुशी के त्यौहार पर
पूजा के वक़्त पर
हे भगवान् , तुम्हारा पीपल ही
तुम्हारा रूप बनता
तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी
नील अम्बर को सुनेहरा बनाते
तेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे भगवान् तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी

Poems on Nature in Hindi

प्रकृति, हमें सुखी एवं स्वस्थ जीवन जीने के लिए एक खूबसूरत और शांत पर्यावरण उपलब्ध करवाती है। कुदरत, न सिर्फ हमें कई तरह के सुंदर फल-फूल, अद्भुत पशु-पक्षी, लाभकारी जड़ी-बूटियां  आदि  उपलब्ध करवाती है, बल्कि यह जंगल, नदियां, पठार, पहाड़, धरती आदि समेत तमाम प्राकृतिक चीजों का लाभ भी देती हैं।

वहीं प्राकृतिक संसाधन के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसलिए हम सबका कर्तव्य है कि हम अपनी प्रकृति को सहज कर रख सकें और इसको बचाने के लिए प्रयास करें।

वहीं कवि की इन कविताओं से जरूर ही आपके मन में प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ेगा और इसे बचाने के लिए लिए प्रेरित होंगे।

मौसम बसंत का

लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का
गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी
फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी
पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी
प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी
सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे
सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे
आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे
डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का
ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद
वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद
स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का
भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का
माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें
विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे
जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा
चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का

Hindi Poem Prakriti

कुदरत, दुनिया का सबसे नायाब तोहफा है, कुदरती, खूबसूरती  में हर किसी का खो जाने का मन करता है, तो दूसरी तरफ इससे मिलने वाले कई फायदों को लेकर प्रकृति के लिए तरह-तरह के अच्छे विचार मन में आते हैं।

वहीं  कुछ महान कवियों ने तो प्रकृति पर आए अपने सुंदर विचारों को बेहद खूबसूरत ढंग से कविताओं के माध्यम से बताने की कोशिश की है। उन्हीं कविताओं में से कुछ कविताएं हमने आपको उपलब्ध करवा रहे हैं, जिन्हें पढ़कर यकीनन आपको अच्छा महसूस होगा साथ ही कुदरत की महिमा भी समझने में आसानी है।

बाढ़

नदियों के बहाव को रोका और उन पर बाँध बना डाले
जगह जगह बहती धाराएँ अब बन के रह गई हैं गंदे नाले
जब धाराएँ सुकड़ गई तो उन सब की धरती कब्जा ली
सीनों पर फ़िर भवन बन गए छोड़ा नहीं कुछ भी खाली
अच्छी वर्षा जब भी होती हैं पानी बाँधो से छोड़ा जाता है
वो ही तो फ़िर धारा के सीनों पर भवनों में घुस जाता हैं
इसे प्राकृतिक आपदा कहकर सब बाढ़ बाढ़ चिल्लाते हैं
मीडिया अफसर नेता मिलकर तब रोटियां खूब पकाते हैं

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