काल्काजी मंदिर का इतिहास | Kalkaji Temple History

काल्काजी मंदिर – Kalkaji Temple

काल्काजी मंदिर भारत के प्राचीन और सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भारत के दिल्ली शहर में स्थित हैं। इसे ‘जयंती पीठ’ और ‘मनोकामना सिद्ध पीठ’ के नाम से भी जाना जाता है।

मनोकामना का अर्थ इच्छा, सिद्ध का अर्थ पूरी करने और पीठ का अर्थ मंदिर से है। यह माँ कालिका देवी का प्रसिद्ध है, जो अपने भक्तो की मनोकामना को पूरा करती है।

Kalkaji Temple

काल्काजी मंदिर का इतिहास – Kalkaji Temple History

3000 साल पहले बने इस मंदिर का कुछ भी भाग अभी बचा हुआ है, क्योकि मुघलो ने इस मंदिर पर आक्रमण कर इसे ध्वस्त कर दिया था।

कहा जाता है की पांडव और कौरवो ने यहाँ सर्वशक्तिमान बनने की प्रार्थना की थी। जबकि मंदिर की वास्तविक संरचना के छोटे से भाग का निर्माण 1734 में किया गया, जिसे पहाड़ी के उपर देखा जा सकता है।

बाद में 19 वी शताब्दी के बीच में अकबर द्वितीय के कोषाध्यक्ष रजा केदारनाथ ने मंदिर में कुछ बदलाव और सुधार किये।

पिछले 5 से 6 दशको में, मंदिर के आस-पास बहुत सी धर्मशालाओ का निर्माण किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण शामलट थोक ब्राह्मण और थोक जोगियन की जमीन पर किया गया, जो काल्काजी मंदिर के पुजारी है।

काल्काजी मंदिर की कहानी – Kalkaji Tmple Story

लाखो साल पहले, मंदिर के पड़ोस में रहने वाले भगवान को दो विशाल दानव कष्ट देने लगे और परिणामस्वरूप उन्होंने सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी से शिकायत की। लेकिन ब्रह्मा जी ने बीच में आने से मना कर दिया और उन्हें माँ पार्वती के पास जाने के लिए कहा।

तभी माँ पार्वती के मुख से कौशकी देवी निकली, जिन्होंने उन दो दानवो पर आक्रमण कर उन्हें मार डाला, लेकिन जैसे ही उन दो दानवो का रक्त सुखी धरती पर गिरा वैसे ही जीवन में हजारो दानव जीवित हो गये और विविध बाधाओ के बावजूद कौशकी देवी लडती रही।

यह सब देखकर माँ पार्वती को उनपर दया आ गयी और परिणामस्वरूप कौशकी देवी की भौहो से माँ काली देवी निकली, जिनके निचले ओंठ निचे पहाडियों पर और उपरी ओंठ आकाश को छु रहे थे। आते ही उन्होंने मरे हुए दानवो का रक्त ग्रहण किया और शत्रुओ पर विजय प्राप्त की।

इसके बाद माँ काली देवी ने उसी जगह को अपना निवासस्थान बना लिया और तभी से उनकी पूजा उस स्थल की मुख्य देवी के रूप में की जाने लगी।

माना जाता है की देवी काल्काजी प्रार्थना करने से खुश होती है और वरदान देती है। वर्षो से देवी काल्काजी वहां रहते हुए अपने भक्तो की मनोकामना पूरी करती है। महाभारत के समय भगवान कृष्णा और पांडव ने यही देवी की पूजा की थी।

आज भी उत्सवो के आयोजन के साथ-साथ काल्काजी मंदिर में रोज देवी काली की पूजा की जाती है। रोज देवी काली की मूर्ति का अभिषक दूध से किया जाता है। अभिषेक के बाद सुबह 6 बजे और शाम 7:30 बजे आरती की जाती है। यह पूजा मंदिर के पुजारियों द्वारा ही की जाती है।

हर रोज हजारो श्रद्धालु यहाँ देवी के दर्शन के लिए आते है और माँ कलिका देवी का आशीर्वाद लेते है। नवरात्र के समय श्रद्धालुओ की समस्या हजारो से बढ़कर लाख तक पहुच जाती है।

पर्यटकों के लिए मंदिर सुबह से देर रात तक खुला रखा जाता है। पर्यटक मंदिर के आस-पास के मनोरम वायुमंडल का भी आनंद ले सकते है।

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2 thoughts on “काल्काजी मंदिर का इतिहास | Kalkaji Temple History”

  1. May Sunday 3 ko Maa Kay darshan karney gya tha.wha par ak lady police bhawan ky Ander sab ka parshad lay ky fayek rhi the e Kya hum 2 ghaty line may lag kar aap Maa ky darshan bhi nhe kar sakty hamari ?

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