Lalita Mukati Organic Farming in Madhya Pradesh
हमारे देश में जब किसान की बात आती है तो हम पुरुष के बारे में ही सोचते है और हमें महिलाओं का ध्यान नहीं आता है। दरअसल महिला किसान हमारे समाज में होती ही नहीं। वो पति के साथ खेतों में तो जाती है लेकिन किसान पति ही होता है। लेकिन कुछ महिलाएं होती है जो अपनी अलग पहचान बनाती है और ऐसा ही एक नाम है ललिता मुकाटी – Lalita Mukati का जो मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले के बोड़लई में रहती है। ललिता आर्गेनिक तरीके से खेती – Organic Farming कर रही है और महीने के लाखो रुपये कमा रही है। ललिता को राज्य और केंद्र सरकार से कई सारे सम्मान भी मिल चुके है।
कहानी उस महिला किसान की जो आर्गेनिक खेती से लाखों कमा रही है – Lalita Mukati Organic Farming in Madhya Pradesh
ललिता ने अपनी कहानी बताते हुए कहा की “मेरे पति के पास लगभग 36 एकड़ की जमीन है और वो कृषि में स्तानक है। मैं उन्हें खेतो में काम करते हुए देखती थी तो खुद भी उनके साथ जाने लगी और काम करने लगी”।
ललिता ने कहा की शुरुआत में मेरे पति ही खेती करते थे लेकिन धीरे धीरे मैंने सारी तकनीक सीख ली और पूरा साथ देने लगी। इसके बाद मैंने देखा की खेती में केवल कीटनाशको का इस्तेमाल किया जाता है और यह पूरी तरह से गलत है।
यह मंहगे भी होते है और इनसे कोई उत्पाद सही भी नहीं मिलता है। ललिता ने यही से फैसला किया की वो अब कीटनाशको का इस्तेमाल नहीं करेगी। इसके बाद उन्होंने आर्गेनिक तरीके से खेती करने का विचार बनाया।
साल 2015 में आर्गेनिक खेती –
पचास साल की ललिता आज खेती से महीने के लगभग अस्सी हजार रुपये कमा रही है और इसकी शुरुआत उन्होंने साल 2015 में की थी। उन्होंने सभी कीटनाशको का इस्तेमाल करना बंद कर दिया और गोबर, गौमूत्र और रसोई से निकलने वाले कचरे का इस्तेमाल किया।
इसके बाद ललिता ने अपने खेतो में शीताफल, नीम्बू, केला और आंवला लगाना शुरू किया। इन्हें वो पूरी तरह से कीटनाशको से दूर रखती थी। शुरुआत में पैदावार कम हुई लेकिन कीटनाशको में पैसा नहीं लगाने से उन्हें फायदा होने लगा।
ललिता कहती है की पहले खाद और कीटनाशक में ही इतने पैसे लग जाते थे की केवल दो से तीन हजार का एक रबी में फायदा होता था। ललिता ने अपनी फसल को जब जैविक रूप दिया तो लोग उनकी फसल को देखकर जैविक खेती की ओर बढने लगे।
ललिता आज अपनी फसल को एमपी के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली में बेचती है। साल 2016 में उन्हें एमपी बायोलॉजिकल सर्टिफिकेट भी प्रदान किया गया जिससे दूसरे राज्यों में अपनी फसल भेजना आसान हुआ।
ललिता ने कहा की हर साल इसका जैविक परीक्षण किया जाता है और बहुत ही जल्द वो भारत से बाहर भी अपनी फसल को भेजने लगेगी। अब ललिता को फसल से लगभग डेढ़ गुना फायदा हो जाता है। उनके शीताफल महाराष्ट्र और गुजरात में खूब बिकते है।
ललिता को उन 112 महिलाओ की लिस्ट में शामिल किया गया है जो महिलाएं जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। इन महिलाओ को प्रधानमंत्री पुरस्कार भी दिया जाएगा। इसके अलावा मुख्यमंत्री किसान विदेश अध्ययन योजना के तहत किसानो को खेती समझने के लिए दूसरे देशो में भेजा जाता है।
ललिता आजकल बिना मिटटी वाली खेती करने का विचार बना रही है और इसके लिए वो पानी की छोटी छोटी थैलियाँ इस्तेमाल कर रही है। ललिता ने बायोगैस का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है। उन्होंने अपने आसपास सोलर पैनल लगा रखा है और इसकी सहायता से वो बायोगैस का निर्माण कर खाना बनाने का काम करती है।
ललिता आज के समय में ग्रुप बनाकर लोगो को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। ललिता का कहना है की मैं लोगो को बताना चाहती हूँ की केमिकल वाली खेती हमारे लिए कितनी खतरनाक है और जैविक खेती से हमे क्या क्या लाभ हो सकता है।
ललिता को देखकर गाँव में भी कई सारे लोगो ने जैविक खेती करनी शुरू कर दी है। वो कहती है की लोग समझ रहे है लेकिन उस पैमाने पर नहीं। एक दिन आएगा जब हर कोई इसी तरीके से खेती करने का विचार बनाएगा।
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यह कहानी आज की युवा पीढ़ी को inspire करती है और उन्हें अपनी सोच को बदल कर सिर्फ बिजनस ही नहीं बल्कि खेती करके अच्छी कमी करने के लिए प्रेरित करती है। बहुत खूब। धन्यवाद ।
Orgnaic kheti trend kar rahi hai. Is article se ye saaf jahir hota hai. Bahut bhadiya. Keep going like this.
Very Inspiring story!
इस लेख को वाकई बहुत ही खूबसूरती के साथ लिखा गया है। आपका लेख बाकई सराहनीय है।
Bahut hi badhiya article likha hain aapne … faslone me keetnashak ka use hum sabhi ki health se khilwad hai .. garv hai lalita jaise mahilayon par