महात्मा ज्योतिबा फुले

ज्योतिराव फुले को 19वीं सदी के प्रमुख समाज सेवी माना जाता है, वे एक महान समाज सुधारक के साथ-साथ एक महान क्रांतिकारी, अच्छे लेखक, भारतीय विचारक, एवं उच्च कोटि के दार्शनिक थे।

उन्होंने अपने जीवन में समाज में फैली कुरोति जैसे जातिप्रथा, छूआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा का जमकर विरोध किया और  महलिाओं के उत्थान के लिए कई काम किए साथ ही महिलाओं को उनका हक दिलवाने के लिए महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया और विधवा विवाह का पूरजोर समर्थन किया। इसके साथ ही ज्योतिबा फुले ने किसानों को भी उनका हक दिलवाने के लिए आजीवन संघर्ष किया।

वहीं दलितों के मसीहा माने जाने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर जी भी ज्योतिबा फुले को अपना गुरु मानते थे। आज हम आपको अपने इस पोस्ट में भारत के इस महान समाजसेवी के जन्म से लेकर उनके जीवन में किए गए उल्लेखनीय कामों के बारे में विस्तृत रुप से जानकारी देंगे –

Mahatma Jyotirao Phule

महात्मा ज्योतिबा फुले | Mahatma Jyotiba Phule Biography in HIndi

पूरा नाम (Name) ज्योतिराव फुले
अन्य नाम महात्मा ज्योतिबा फुले
जन्म (Birthday) 11 अप्रैल, 1827, पुणे (महाराष्ट्र)
पिता (Father Name) गोविंदराव फुले
माता (Mother Name) चिमणाबाई
जाति (Cast) शुद्र वर्ण, मालि जाति
विवाह (Wife) सावित्रीबाई फुले
मृत्यु (Death) 28 नवंबर, 1890, पुणे

शुरुआती जीवन

19वीं सदी के इस प्रखर समाजसेवी और सुविख्यात क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले 11 अप्रैल, साल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में एक माली परिवार के घर में जन्मे थे। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोन्हे, ज्योतिराव गोविंदराव फुले था।

गरीब परिवार में जन्म होने की वजह से उन्हें काफी तंगी और परेशानी में अपना बचपन गुजारना पड़ा। ज्योतिराव फुले की पिता का नाम गोविंदराव था, जबकि माता का नाम चिमणा बाई था, हालांकि उनकी मां उनके पैदा होने के 1 साल के बाद ही दुनिया छोड़कर चल बसी थी।

जिसके बाद उनका पालन-पोषण सगुना बाई नामक एक दाई ने किया था, जिसने महात्मा ज्योतिबा फुले की एक मां की तरह प्यार-दुलार कर परवरिश की। ज्योतिबा फुले के परिवार के बारे में यह कहा जाता है कि उनका परिवार के लोग अपने गुजर-बसर के लिए बाग-बगीचों में माली का काम करते थे और घर-घर जाकर फूल, गजरे आदि बेचते थे, इसलिए उनकी पीढ़ी ‘फुले’ के नाम से जानी जाती थी।

जातिगत भेदभाव की वजह से स्कूल से निकाले गए थे  –

जब ज्योतिबा फुले 7 साल के हुए तो उनको शिक्षा दिलवाने के उद्देश्य से गांव के एक स्कूल में भेजा गया था, लेकिन स्कूल में उन्हें जातिगत-भेदभाव का शिकार होना पड़ा। यही नहीं उन्हें स्कूल से तक निकाल दिया गया।

लेकिन इसक ज्योतिबा फुले पर कोई खासा असर नहीं हुआ क्योंकि बचपन से ही वे अपने लक्ष्य के प्रति अडग रहने वाले और दृढ़निश्यी स्वभाव के व्यक्ति थे।  इसलिए स्कूल छूटने के बाद भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और घर पर ही सगुना बाई की मद्द से अपनी पढ़ाई जारी रखी।

वहीं साल 1847 में उनकी प्रतिभा को देखकर ज्योतिबा के पडो़स में रहने वाले उर्दू-फारसी के एक टीचर और इसाई पादरी ने फिर से उनका एडमिशन एक इंग्लिश स्कूल में करवा दिया जहां से उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।

वहीं अपनी स्कूल की पढ़ाई के दौरान ही ज्योतिबा फुले को यह आभास हो गया कि शिक्षा के माध्यम से ही दलितों का उत्थान हो सकता है और महिलाओं को उनका अधिकार मिल सकता है। वहीं शिक्षा के महत्व को उन्होंने अपने इस विचार के माध्यम से समझाया जो कि इस प्रकार है –

विद्या बिना मति गयी, मति बिना नीति गयी।

नीति बिना गति गयी, गति बिना वित्त गया।

वित्त बिना शूद गये, इतने अनर्थ, एक अविद्या ने किये।।

जातिगत भेदभाव और धर्म के बीच की रुढ़िवादी दीवार को तोड़ना चाहते थे –

बचपन में जब ज्योतिबा फुले को जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा था, तभी से उनके मन में सामाजिक भेदभाव को दूर करने की भावना पैदा हो गई थी।

वहीं सामाजिक भेदभाव को जड़ से खत्म करने के लिए ज्योतिबा फुले ने गौतम बुद्ध, संत कबीर, दादू, संत तुकाराम, रामानंद जैसे महान साहित्यकारों द्धारा लिखे गए साहित्यों का गहन अध्ययन किया।

आापको बता दें कि ज्योतिबा फुले हिन्दू धर्म में फैले अंधविश्वास, ऊंच-नीच, जातिगत भेदभाव, आदि के घोर विरोधी थे।

वे इसे देश के और मनुष्य के विकास में बाधा मानते थे,और वे जातिगत भेदभाव की इस रुढिवादी दीवार को पूरी तरह तोड़ना चाहते थे, हालांकि बाद में वे सामाज में फैली तमाम  बुराइयों को दूर करने और उच्च वर्ग और दलित वर्ग की बीच बनी रुढिवादी दीवार को तोड़ने में सफल भी हुए।

वहीं उनके प्रयास के बल पर ही आधुनिक भारत के निर्माण में मद्द मिली है।

महिला शिक्षा के लिए भारत के पहले बालिका स्कूल की रखी नींव

ज्तोतिबा फुले एक महान और दूरदर्शी सोच वाले व्यक्ति थे, ज्योतिबा फुले का मानना था कि नारी के शिक्षित होने से ही एक सभ्य और शिक्षित समाज का निर्माण संभव है, इसलिए उन्होंने नारी शिक्षा पर खास ध्यान दिया। ज्योतिबा फुले ने  साल 1854 में भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला बालिका स्कूल खोला।

यह वो वक्त था, जब लोग महिलाओं को शिक्षा देना तो दूर घर से बाहर भी नहीं निकलने देते थे। इसी वजह से ज्योतिबा फुले को स्कूल खोलने के लिए भी काफी विरोध सहना पड़ा था। वहीं जो भी टीचर उनके स्कूल में बालिकाओं को पढ़ाने के लिए राजी होता तो उसे समाज के कुछ संकीर्ण सोच वाले व्यक्तियों के विरोध का सामना करना पड़ता था, जिसकी वजह से कोई भी टीचर उस स्कूल में नहीं टिक पाता था, इसके बाद ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले को एक शिक्षिका के तौर पर तैयार किया और उन्हें एक मिशनरीज स्कूल में ट्रेनिंग दी।

इसके बाद सावित्री बाई फुले ने इस स्कूल में भारत की पहली प्रशिक्षित महिला शिक्षिका के तौर पर महिलाओं की शिक्षा दी। हालांकि, समाज का कड़ा विरोध और परिवारिक दवाब के बाद भी ज्योतिबा फुले का बुलंद हौसला कभी डगमगाया नहीं और उन्होंने आगे भी महिलाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए तीन और स्कूल खोले।

दलितों, गरीबों, और किसानों के उत्थान के लिए किए कई काम

उस समय दलितों की स्थिति बेहद खराब थी, यहां तक कि उन्हें सावर्जनिक स्थलों से पानी पीने तक की इजाजत नहीं थी, जिसको देखते हुए महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने अपने घर में दलितों के लिए एक पानी का कुआं खुदवाया और बाद में जब वे न्याय पालिका के सदस्य नियुक्त किए गए तो उन्होंने दलितों के लिए सार्वजनिक स्थल पर पानी की टंकी भी बनवाई।

हालांकि बाद में उन्‍हें अपनी जाति से बहिष्‍कृत कर दिया गया था।

इसके अलावा ज्योतिबा फुले ने गरीबों और असहाय लोगों को इंसाफ दिलवाने के लिए ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की, वहीं उनकी स्थापना से प्रभावित होकर साल 1888 में उन्हें ‘महात्‍मा’ की उपाधि से नवाजा गया था।

ज्योतिबा फुले, किसान-मजूदर आंदोलन के प्रणेता के तौर पर भी जाने जाते थे, उन्होंने मजदूरों को किसानों के हित के लिए अपनी आवाज बुलंद की। उन्होंने मजूदरी करने के समय को कम करने , सप्ताह में एक दिन का अवकाश करने आदि की मांग उठाई।

वहीं ज्योतिबा फुले और उनके संगठन सत्‍यशोधक समाज के संघर्ष की बदौलत सरकार ने एग्रीकल्‍चर एक्‍ट भी पास किया गया, जिससे किसानों को समाज में एक नई दिशा मिली।

ज्योतिबा फुले ने बाल विवाह, सती प्रथा विरोध किया और विधवा विवाह को दिया समर्थन

ज्योतिबा फुले ने उस समय समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने के लिए  और महिलाओं को उनका हक दिलवाने के लिए कई काम किए। आपको बता  दें कि उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा का जमकर विरोध किया। ज्योतिबा फुले, विधवा विवाह के वे घोर समर्थक थे, विधवाओं के विवाह के लिए उन्होंने अभियान भी चलाया।

इसके साथ ही ज्योतिबा फुले ने अपने एक करीबी ब्राह्राण मित्र विष्णु शास्त्री पंडित का विवाह एक विधवा ब्राह्माणी से भी करवाया। इसके बाद साल 1871 में उन्होंने अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले के सहयोग से पुणे में एक विधवा आश्रम भी खोला।

किताबें

अपने जीवन काल में ज्योतिबा फुले ने कई पुस्तकें भी लिखीं-

  • तृतीय रत्न,
  • अछूतों की कैफियत
  • राजा भोसला का पखड़ा,
  • ब्राह्मणों का चातुर्य,
  • छत्रपति शिवाजी
  • किसान का कोड़ा,

आखिरी समय –

महान समाज सुधारक और विचारक महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले को आखिरी समय में पैरालिसिस अटैक पड़ गया, जिसकी वजह से वे काफी कमजोर हो गए थे। इसके बाद  63 साल की उम्र में 28 नवंबर 1890 को पुणे में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

समाज में उनके द्धारा किए गए कामों के लिए महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले को हमेशा याद किया जाएगा, वहीं जिस तरह उन्होंने तमाम संघर्षों को झेलने के बाद समाज के हित के लिए काम किए वो वाकई सराहनीय है, भारतीय समाज हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा।

भारत के इस महान समाजसेवी ज्योतिबा फुले को ज्ञानी पंडित की टीम की तरफ से शत-शत नमन।

31 thoughts on “महात्मा ज्योतिबा फुले”

  1. mahendra mali rajgarh

    Thank you for mahatma jyoti bha fhule ,
    jin logo ne mahatma jyoti bha fhule ke vichar
    apne jivan me apna liy vo khabi piche nhi agge dhohdega.

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