राजपूतों का इतिहास – Rajput History in Hindi

Rajput History in Hindi

अपने धर्म के लिए समर्पित, साहसी, वीर माने जाने वाले राजपूतों का इतिहास काफी दिलचस्प है। आपको बता दें कि राजपूतों को उनके अद्भुत साहस और पराक्रम की वजह से क्षत्रिय और ठाकुर कहकर भी संबोधित किया जाता है।

आज से कई हजार साल पहले उत्तर भारत के अधिकतर हिस्सों में राजपूत राजाओं का शासन हुआ करता था। इसलिए राजपूतों को उत्तर भारत की एक क्षत्रिय कुल माना जाता है।

Rajput History in Hindi

राजपूतों का इतिहास – Rajput History in Hindi

राजपूत शब्द की उत्पत्ति राजपुत्र से हुई है, इसलिए राजपूतों के लिए यह भी काफी प्रचलित है कि राजपूत केवल राजकुल यानि कि राजा के कुल में ही पैदा होते हैं, हालांकि राजा के कुल में तो कई जातियां पैदा हुईं लेकिन, वे सभी को राजपूत नहीं कहलाई।

इसलिए राजपूत राजकुल में पैदा होने से नहीं बल्कि राजा जैसे गुण रखने और सभी के हित के बारे में सोचने, सभी की रक्षा करने एवं अपने धर्म के प्रति सर्मपित रहने के लिए राजपूत कहलाए।

अंग्रेजी शासन के दौरान राजपूतों को राजपूताना भी कहा जाता था। वहीं हिन्दू धर्म की जाति व्यवस्था को चार वर्णों में बांटा गया, लेकिन बाद में इन वर्णों के अर्न्तगत कई जातियां बनाईं गईं, तो वहीं कवि चंदबरदाई के कथा के मुताबिक राजपूतों को 36 जातियों में वर्गीकृत किया गया था, जबकि राजपूतों के प्रमुख गोत्र राठौड़, कुशवाहा, दहिया, पंवार, चौहान, सिसौदिया, जादों आदि हैं।

बड़े-बड़े इतिहासकारों के मुताबिक राजपूत काल के समय क्षत्रिय वर्ण के सूर्यवंश और चन्द्रवंश के राजघरानों का जमकर विस्तार हुआ था, क्योंकि उस दौरान सिर्फ क्षत्रिय वर्ग को ही युद्ध कौशल में निपुण बनाने की परंपरा थी, सिर्फ राजपूत एवं क्षत्रिय लोग ही युद्ध में पूरी तरह से हिस्सा ले सकते थे, इसके साथ ही राजकाज की पूरी जिम्मेदारी संभाल सकते थे।

प्राचीन काल में सभी जातियों के आधार पर उनके अलग-अलग काम बांटे गए थे, जैसे कि ब्राह्मण जाति के लोग शिक्षाविद्, पंडित एवं विद्धान थे, उसी तरह वैश्य अर्थात बनिया जाति के ज्यादातर लोग अपना व्यापार करते थे और शुद्र जाति के लोगों को साफ-सफाई जैसे छोटे कामों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

राजपूतों ने 7वीं शताब्दी से 12वीं शताब्दी के बीच भारत के मुख्य हिस्सों पर अपना कब्जा जमाया था। भारत के ज्यादातर मुख्य हिस्सों पर राजपूत राजाओं का शासन हुआ करता था, इसलिए इस समय को राजपूत काल का स्वर्ण युग भी कहा जाता है।

हालांकि, राजपूत राजाओं के अहंकार और आपसी लड़ाई-झगड़े एवं मतभेद की वजह से भारत छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया। वहीं राजा हर्षवर्धन एक ऐसे राजपूत शासक थे, जिन्होंने 590 से 647 ईसापूर्व तक एक छत्र शासन किया और पंजाब को छोड़कर पूरे उत्तर भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया।

आपको बता दें कि राजा हर्षवर्धन के बाद कोई भी ऐसा राजा नहीं था, जिसने भारत पर इतने लंबे समय तक राज किया हो।

वहीं राजपूत शासकों की विचारधारा का आपस में मेल नहीं खाने का सबसे बड़ा फायदा मुगलों को हुआ। आपसी लड़ाई के कारण राजपूत शासक एक-दूसरे पर हमला करते थे, जिसका राजपूत वंश का पतन होता चला गया और मुगल साम्राज्य का विस्तार हुआ।

आखिर राजपूत जाति की उत्पत्ति कैसे हुई? – History of Rajputana

राजपूत वंश की उत्पत्ति को लेकर बड़े-बड़े इतिहासकारों ने अपनी अलग-अलग व्याख्या की है। किसी ने राजपूतों को भारत पर आक्रमण करने वाली विदेशी जाति बताया और किसी ने राजपूतों को प्राचीन क्षत्रियों की संतान और पूर्ण रुप से भारतीय बताया।

ब्रिटिश लेखक कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों की तुलना विदेशी सीथियन जाती से करते हुए, दोनों जातियों की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति को बराबर बताया था। इसके साथ ही उन्होंने राजपूत एवं सीथियन जाति के पहनावा, रहन-सहन, खान-पान, युद्ध कौशल, अस्त्र-शस्त्र की विद्या में काफी समानता बताई थी और राजपूत को सीथियन के वंशज बताया था।

तो वहीं ब्रिटिश इतिहासकार विलियम क्रूक ने भी कर्नल जेम्स टॉड की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि कुषाण एवं शक जैसी तमाम विदेशी जातियां भारत आकर यहां के समाज में पूरी तरह से घुल-मुल गईं।

और इन देशी और विदेशी जातियों के मिलने से राजपूत वंश की उत्पत्ति हुई। यही नहीं कई बड़े भारतीय इतिहासकारों ने भी विदेशी जाति को भारतीय समाज में शामिल होने को ही राजपूतों की उत्पत्ति बताया था।

वीर, साहसी और पराक्रमी होने के बाबजूद भी आखिर क्यों हुआ राजपूतों का पतन:

जाहिर है कि राजूपतों को उनके अद्भुत साहस और अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण, युद्ध कौशल से पारंगत आदि गुणों के लिए जाना जाता है। भारतीय इतिहास भी राजपूत शासकों की वीरता की कहानियों से भरा पड़ा है।

राजपूतों के बारे में यह भी कहा जाता था कि राजपूत या तो युद्ध जीतकर लौटते थे,या फिर वीरगति प्राप्त करते थे। यही नहीं मुगल वंश के राजा भी राजपूतों के साहस और पराक्रम की मिसाल देते थे, लेकिन इतने वीर होने के बाद भी राजपूत वंश के महान एवं वीर शासक पृथ्वीराज चौहान एवं महाराणा प्रताप शासकों को भी युद्द में हार का सामना करना पड़ा था, यही नहीं राजपूतों कों कई युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और राजपूत वंश का पतन होता चला गया और मुगल सम्राज्य का विस्तार होता चला गया, जिसके कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं –

  • राजपूत शासकों की आपस में नहीं बनना:

राजपूत वंश के पतन का मुख्य कारण राजपूत शासकों की विचारधारा का आपस में मेल नहीं खाना था।

दरअसल अहंकार और क्रोध के चलते राजपूतों शासकों में आपसी प्रेम, भाईचारा, सदभाव,सौहार्द और संगठन की कमी थी। राजपूत शासकों एक-दूसरे के राज्य में ही हमला कर दिया करते थे,जबकि मुगल वंश के शासक एकजुट होकर ही युद्ध लड़ते थे, यही वजह है कि मुगल सम्राज्य का तेजी से विस्तार होता चला गया और यह राजपूतों के पतन की एक मुख्य वजह बनी।

  • राजपूतों का पारंपरिक युद्ध नीति अपनाना:

राजपूत युद्ध में हमेशा ही अपनी पारंपरिक और पुरानी युद्ध नीतियां अपनाते थे। वे कभी मुगलों की तरह कूटनीति एवं षडयंत्र के साथ युद्ध नहीं लड़ते थे। राजपूत, दुश्मन सेना पर सामने से सीधे तरीके से हमला करते थे और इनके पास कोई बेकअप प्लान नहीं होता था न ही कोई युद्ध की रणनीति बनाते थे।

जबकि इसके विपरीत मुगल युद्ध के लिए पूरी तैयारी करते थे और कुशल कूटनीति एवं रणनीति से युद्ध लड़ते थे। इसी वजह से वे युद्ध में राजपूतों को हराने में कामयाब हो जाते थे और राजपूतों को हार का सामना करना पड़ता था।

  • राजपूत कूटनीति और षडयंत्र से युद्ध नहीं बल्कि ईमानदारी से युद्द लड़ते थे:

राजपूत अपने उसूलों के पक्के होते थे और एक बार जो प्रतिज्ञा कर लेते थे और उसी पर अमल रहते थे।

इसके साथ ही राजपूत कभी भी छल, कपट, षडयंत्र, ईर्ष्या की भावना से युद्ध नहीं लड़ते थे, बल्कि वे पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ युद्ध लड़ते थे, राजपूत निहत्थे वार नहीं करते थे, जिसकी वजह से उन्हें युद्द में कई बार हार का सामना करना पड़ता था और जरूरत से ज्यादा ईमानदारी बाद में राजपूत वंश के पतन का कारण बन गई।

आज हर क्षेत्र में राजपूतों का बोलबाला-

चाहे शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो, मनोरंजन हो पर्यटन हो, यातायात हो, आर्मी हो, राजनीति हो या फिर कोई और क्षेत्र आज हर क्षेत्र में राजपूत जाति के लोग अपनी धाक जमा रहे हैं।

वहीं ज्यादातर राजपूत वंश के लोग उत्तर और मध्य भारत और राजस्थान के गांव देहात इलाके में रहते है। जिनका मुख्य बिजनेस खेती करना अथवा पशुपालन है।

इतिहास से ही राजपूत जाति के लोगों ने अपनी एक अलग पहचान विकसित की है राजा हर्षवर्ध सिंह, पृथ्वीराज चौहान, जोधा बाई, मीराबाई, महाराणा प्रताप जैसे राजपूत शासकों की वीरता की कहानी स्वर्णिम अक्षरों में इतिहास के पन्नों पर लिखी हुई है।

भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि राजनीति, खेल, कला के क्षेत्र में चंद्रशेखर (भारत के 11वें प्रधानमंत्री), जसवंतसिंह, रवीन्द्र सिंह जाडेजा, महेन्द्र सिंह धोनी, सुनिधि चौहान, सोनल चौहान, कंगना राणावत, प्रीति जिंटा समेत तमाम राजपूत हस्तियों ने अच्छा काम कर बाकी लोगों के लिए एक मिसाल कायम की है और अपने महान कामों से न सिर्फ राजपूत जाति का मान बढ़ाया बल्कि समस्त भारतवासियों को भी गौरान्वित किया है।

किसी जाति या फिर वर्ण के आधार पर किसी को विद्धान, वीर, और श्रेष्ठ की संज्ञा नहीं दी जा सकती। क्योंकि हर मनुष्य अपने सामर्थ्य, शक्ति और विवेकशीलता के आधार पर काम करता है और सफलता अर्जित कर खुद को साबित करता है। इसलिए जातियों से जुडे़ मिथकों पर यकीन नहीं करना चाहिए।

More History

Hope you find this post about ”Rajput History in Hindi” useful. if you like this information please share on Facebook.

Note: We try hard for correctness and accuracy. please tell us If you see something that doesn’t look correct in this article about the life history of Rajput in Hindi. And if you have more information History of Rajputana in Hindi then help for the improvements this article.

1 thought on “राजपूतों का इतिहास – Rajput History in Hindi”

  1. Sujeet rajpoot

    आपकी लेखनी ने राजपूतों के मान सम्मान को एक बार फिर से जीवित कर दिया है, राजपूतों की वीरगाथा को आपकी लेखनी ने आईने की तरह समाज के सामने रखा है, आपने अपनी लेखनी के माध्यम से सही कहा..हम राजपूत ज़रूरत से ज़्यादा ईमानदार और ज़रूरत से ज़्यादा किसी पर भरोसा करने की वजह से हार का मुँह देखते है, बावजूद इसके हमारी फ़ितरत किसी को हानी पहुँचाने की नही होती और ये हमें अपने पूर्वजों से मिला है

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top