क्रांतिकारी रास बिहारी बोस का जीवन परिचय | Rash Behari Bose Biography

Rash Behari Bose

देश को आजादी दिलाने में हर क्रांतिकारी ने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की थी। फिर इस आजादी की लड़ाई में हर क्रांतिकारी और देशभक्त का सफ़र अलग अलग रहा है। कुछ क्रांतिकारी देश को आजाद करने के लिए विलायत में भी जाकर दुसरे देशो की मदत से अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई करते थे। रास बिहारी बोस भी कुछ ऐसी ही क्रांतिकारी में आते है जिन्होंने दुसरे देश में जाकर भारत को आजादी दिलाने के लिए प्रयास किये थे।

लेकिन रास बिहारी बोस को देश के बाहर जाकर क्यों रहना पड़ा इसके पीछे भी लम्बा इतिहास है। इतना ही नहीं जब वे दुसरे देश में रहते थे उन्हें अपना नाम बदलकर भी रहना पड़ता था। रास बिहारी बोस का जीवन केवल इतने पर ही सिमित नहीं रहता उनके जीवन में और भी खास और रोचक बाते हुई थी जिनकी जानकारी अधिकतर लोगो को मालूम नहीं। आज हम आपको क्रांतिकारी रास बिहारी बोस की महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे है।

Rash Behari Bose
Rash Behari Bose

क्रांतिकारी रास बिहारी बोस का जीवन परिचय – Rash Behari Bose Biography

20 वी सदी में जन्मे रास बिहारी बोस (1886-1945) एक महान क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 25 मई 1886 में पश्चिम बंगाल के बर्धमान जिले के सुबालदह गाँव में हुआ था।

बोस उनके मित्र शिरीष चन्द्र घोष के साथ में डूप्लेक्स कॉलेज में पढाई करते थे। उनके कॉलेज के प्रिंसिपल चारू चन्द्र रॉय ने उन्हें क्रांतिकारी राजीनीति में जाने के लिए प्रेरित किया था। उसके बाद रास बिहारी बोस ने कोलकाता के मोर्टन स्कूल में पढाई की। उसके बाद में रास बिहारी बोस ने फ्रांस और जर्मनी में मेडिकल और इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।

रास बिहारी बोस क्रांतिकारी गतिविधिया – Rash Behari Bose Revolutionary activities

बचपन से ही रास बिहारी बोस को क्रांतिकारी बातो में ध्यान देना अच्छा लगता था। सन 1908 में हुए अलीपुर बोम्ब के मामले को लेकर उन्होंने बंगाल को भी छोड़ दिया था। वे देहरादून के वन अनुसन्धान संस्थान में हेड क्लर्क का काम करते थे।

वहापर उनकी मुलाकात युगांतर से जुड़े अमरेन्द्र चैटर्जी से हुई और युगांतर के सबसे अहम व्यक्ति जतिन मुख़र्जी से मिलने के बाद वे बंगाल में होने वाले क्रांतिकारी घटनाओ में चुपके से हिस्सा लेने लगे थे। बाद में उनकी मुलाकात संयुक्त प्रान्त और पंजाब में स्थित आर्य समाज के सदस्यों से भी हुई थी। कुछ समय के लिए रास बिहारी बोस पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में भी रहते थे।

रास बिहारी बोस ने लार्ड हार्डिंग को जान से मारने की कोशिश की थी उसके लिए उन्हें कुछ समय तक छिप कर रहना पड़ा था। 23 दिसंबर 1912 को किंग जॉर्ज पाच का दिल्ली में दरबार भरा था और उस दरबार से लार्ड हार्डिंग वापस आने के समय उसे मारने की कोशिश की गयी थी। अमरेंदर चटर्जी के शिष्य बसंत कुमार बिस्वास ने हार्डिंग पर बम डालकर हमला किया था लेकिन उस हमले में हार्डिंग बच गया।

उस बम को मनिन्द्र नाथ नायक ने बनाया था। इस मामले में अंग्रेज विशेष रूप से रास बिहारी बोस को पकड़ने में लगी थी क्यों की इस हमले के पीछे उनका ही हाथ था। इस हमले का मकसद लार्ड हार्डिंग को मारना नहीं था बल्की इस हमले से रास बिहारी बोस अंग्रेजो को बताना चाहते थे की हमारा देश अपनी मर्जी से गुलाम नहीं बना बल्की अंग्रेजो ने सेना की ताकत से जोर जबरदस्ती से देश पर कब्ज़ा किया है और उसका देशवासी एक होकर सामना करेंगे और देश को गुलामी से आजादी दिलाएंगे।

असल में लार्ड हार्डिंग के साथ में रास बिहारी बोस की कोई दुश्मनी नहीं थी। जिस दिन हमला हुआ था उस रात की ट्रेन से वे देहरादून चले गए दुसरे दिन ऑफिस में रोज की तरह काम करने लगे थे जैसे की कुछ हुआ ही नहीं। केवल इतना ही नहीं उन्होंने देहरादून के कुछ लोगो को बुलाकर वाईसरॉय पर हुए हमले की कड़ी आलोचना भी की थी।

लार्ड हार्डिंग ने इस घटना का वर्णन ‘माय इंडियन इयर्स’ किताब में बहुत ही अलग ढंग से किया था। सन 1913 में बंगाल में बाढ़ आने के कारण उसे नियंत्रण में करने के लिए लार्ड हार्डिंग बंगाल में गए थे उस वक्त उनकी मुलाकात जतिन मुख़र्जी से हुई थी।

उनसे मिलकर लार्ड हार्डिंग काफी प्रभावित हुए थे और जतिन मुख़र्जी में उन्हें आम लोगो का एक सच्चा नेता दिखाई दिया था। लार्ड हार्डिंग कहते है की जतिन मुख़र्जी से प्रेरित होकर ही रास बिहारी बोस अपने सभी काम करते थे।

इसीलिए जब पहला विश्व युद्ध चल रहा था तब गदर पार्टी में सबसे खतरनाक क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ही थे और उन्होंने ही फरवरी 1915 में विद्रोह को तीव्र बनाने का काम किया था। ग़दर संगठना के सभी क्रांतिकारियों को सेना की छावनियो में छिपकर घुसने के लिए कहा गया था।

ग़दर सगठन के सभी क्रांतिकारी लड़ने के लिए यूरोप गए थे लेकिन उन्होंने जैसे सोचा था उसके बिलकुल उल्टा हो गया था और उस विश्व युद्ध में ग़दर संगठना के कई सारे सैनिक पकडे गए और उन्हें कैदी बनाया गया। लेकिन रास बिहारी बोस कैद से बच निकले और सन 1915 में वे जापान पहुच चुके थे।

इंडियन नेशनल आर्मी – Indian National Army

सन 1915 में रास बिहारी बोस जापान में रबिन्द्रनाथ टैगोर के रिश्तेदार बनकर रहते थे और उन्होंने वहापर खुद का नाम भी बदलकर प्रियनाथ टैगोर रखा था। वहापर वे केवल एशिया समहू के लोगो के साथ में ही रहते थे।

सन 1915-18 के दौरान जापान में उन्हें कई बार अपनी पहचान और घर को बदलना पड़ा था क्यों की अंग्रेज सरकार उन्हें जापान से बाहर निकालने के लिए जापान सरकार पर दबाव डालती रहती थी। वहापर रास बिहारी बोस ने नकामुराया बेकरी के मालिक आइजो सोमा और कोक्को सोमा के लड़की से शादी की थी जिसकी वजह से वे सन 1923 मे जापान के नागरिक बन गये थे और वहापर वे पत्रकार और लेखक बनकर रहने लगे थे।

जापान में उन्होंने भारत की स्वादिष्ट करी को बहुत ही मशहूर कर दिया था। उन्होंने जापान में जो करी मशहूर की थी वो अंग्रेजो की करी से थोड़ी महँगी जरुर थी लेकिन काफी स्वादिष्ट लगती थी और उस करी की वजह से रास बिहारी बोस भी काफी प्रसिद्ध हुए थे और लोग उन्हें “नकामुराया के बोस” नाम से बुलाने लगे थे।

रास बिहारी बोस और ए एम नायर ने जापान को भारतीय क्रांतिकारियों की मदत करने के लिए और देशको आजादी दिलाने के लिए जापान की सरकार से मदत मांगी थी और उसमे वे कामयाब भी हुए थे।

रास बिहारो बोस ने टोकियो में 28-30 मार्च 1942 के दौरान एक सम्मलेन आयोजित किया था और उसमे उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग बनाने का फैसला लिया था। सम्मलेन में उन्होंने देश को आजादी दिलाने के लिए एक विशाल सेना बनाने का फैसला लिया था।

22 जून 1942 को उन्होंने लीग का दूसरा सम्मलेन बैंकाक में आयोजित किया था। उस सम्मलेन में सुभाष चन्द्र बोस को बुलाने का और उन्हें लीग का अध्यक्ष बनाने का फैसला किया गया था।

जीन भारतीय सैनिको को मलाया और बर्मा में जापान ने कैद कर रखा था उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया गया था और बाद में वे सभी कैदी इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिक बन चुके थे जिसकी स्थापना 1 सितम्बर 1942 को की गई थी।

आजाद हिन्द सेना के झंडे का चुनाव रास बिहारी बोस ने ही किया था और बाद में उन्होंने उसे सुभाष चन्द्र बोस को सौप दिया था। आई एन ए के सारे अधिकार उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस को सौप दिए थे लेकिन उनके संगठन की रचना पहले जैसे ही थी जिसकी मदत से आगे चलकर सुभाष चन्द्र बोस ने इंडियन नेशनल आर्मी यानि आजाद हिंद फ़ौज को बनाया।

उनकी क्षय से मौत होने से पहले जापान की सरकार ने उन्हें आर्डर ऑफ़ राइजिंग सन (दूसरी ग्रेड) पुरस्कार देकर सम्मानित किया था।

रास बिहारी बोस निजी जीवन – Rash Behari Bose Life History

सन 1918 में जब शिन्जुकू शहर में रास बिहारी बोस तोशिको सोमा के घर में छिपने की कोशिश कर रहे थे तब उनकी तोशिको सोमा से पहली बार मुलाकात हुई थी। तोशिको सोमा आइजो सोमा और कोक्को सोमा की बेटी थी।

उनकी टोकियो में एक बहुत ही बड़ी बेकरी थी और वे एशिया के लोगो के बहुत बड़े समर्थक थे। जब वे तोशिको सोमा से मिले थे तो उस वक्त वे भगौड़ा थे क्यों की अंग्रेज सरकार उन्हें जापान में भी ढूढने की कोशिश कर रही थी। जब वे उनके घर में छिपकर बैठे थे उस वक्त उनकी किसी से भी बात नहीं हुई थी।

लेकिन सन 1916 में उन्होंने सोमा परिवार के सभी लोगो को खुद के घर पर बुलाया था क्यों की उन्होंने ही रास बिहारी बोस को उनके बुरे वक्त में मदत की थी।

लेकिन जापान में सभी लोग उन्हें शक की नजर से देखते थे क्यों की वहापर सभी लोग जापानी थे और रास बिहारी बोस भारतीय होने की वजह से सभी लोग समझ जाते थे की वे जापानी नहीं। तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मित्सुरू टोयामा ने बताया था की तोशिको और रास बिहारी बोस की शादी करायी जाए।

उन्हें लगता था की ऐसा करने से बोस बड़ी आसानी से जापान के नागरिक बन सकते है। वे जापानी ना होने के कारण तोशिको सोमा ने शादी के बारे में सोचने के लिए तीन हफ्ते का समय लिया था लेकिन बाद में उन्होंने शादी के लिए हा कर दी थी।

शादी होने के बाद दोनों काफी खुश थे और बाद में रास बिहारी बोस ने पत्नी को बंगाली भाषा सिखाई। उन्होंने उन्हें साडी पहनना भी सिखाया था।

सन 1923 में बोस जापान के नागरिक बन गए थे। लेकिन उसके बाद में तोशिको की तबियत ठीक नहीं रहती थी और उनकी हालत धीरे धीरे और भी ख़राब हो रही थी जिसकी वजह से सन 1924 मे उनकी मृत्यु हो गयी।

शादी के आठ साल बाद ही उनकी पत्नी गुजर गयी थी लेकिन उन्होंने उसके बाद में कभी भी दूसरी शादी नहीं की। जब रास बिहारी बोस की भी मृत्यु हो गयी थी तो उन्हें भी उनकी पत्नी की कब्र के पास में ही दफनाया गया था।

उन्हें एक लड़का और एक बेटी थी।

रास बिहारी बोस ने देश को आजादी दिलाने में जो काम किया है वह काफी अहम है। आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए सेना की जरुरत होती है। जब उन्हें अंग्रेजो की ताकत का अहसास हुआ तो उन्हें लगा की अंगेजो की सेना का मुकाबला करने के लिए अपने देश की भी एक शक्तिशाली सेना होनी चाहिए और इसी वजह से ही उन्होंने बड़ी संख्या में खुद की सेना खड़ी की थी।

उस समय ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता था का देश गुलामी में होने के बाद भी खुँद की सेना बना सकता है और यह मुश्किल काम रास बिहारी बोस ने बड़ी चतुराई से कर दिखाया था। सेना के अलावा भी उन्होंने ग़दर संगठन की स्थापना की थी और इस संगठन ने भी देश की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

Read More:

Please Note: अगर आपके पास Rash Behari Bose Biography मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे। धन्यवाद
*अगर आपको हमारी Information About Rash Behari Bose In Hindi अच्छी लगे तो जरुर हमें Facebook पे Like और Share कीजिये।

2 thoughts on “क्रांतिकारी रास बिहारी बोस का जीवन परिचय | Rash Behari Bose Biography”

  1. रासबिहारी जी के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नही थी धन्यवाद सिर हमे इनसे अवगत कराने के लिए

    1. Editorial Team

      अतुलजी आपने रास बिहारी बोस की बायोग्राफी पढ़ी और खुद की जानकारी को और भी बढाया। हमें जानकर ख़ुशी हुई की इसे पढ़कर आपकी जानकारी में इजाफा हुआ। आपके ज्ञान को और बढ़ाने के लिए आप हमारी वेबसाइट पर अन्य स्वतंत्रता सेनानी की जानकारी हासिल कर सकते हो।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top