Raskhan ke Dohe
हिन्दी भक्ति साहित्य में रसखान प्रमुख कवियों में से एक माने जाते थे। वे एक कृष्ण भक्त मुस्लिम कवि थे। आपको बता दें कि हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन रीतिमुक्त कवियों में रसखान का स्थान बेहद महत्वपूर्ण है। रसखान का वास्तविक नाम सैयद इब्राहिम था। कवि रसखान ने अपने काव्य में भक्ति और श्रुंगार रस दोनों का बखूबी वर्णन किया गया है।
रसखान जी प्रेम की तन्मयता, भाव और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने मशहूर हैं। उतने ही वे अपनी भाषा की मार्मिकता, शब्द-चयन और व्यंजक शैली के लिए भी मशहूर हैं। रसखान जी ने अपने दोहों में ब्रजभाषा का बेहद सरस और मनोरम इस्तेमाल किया गया है।
आपको बता दें कि सुजान रसखान और प्रेमवाटिका उनकी उपलब्ध रचनाएं हैं। रसखान रचनावली के नाम से उनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है। आज हम अपने इस आर्टिकल में रसखान के दोहों – Raskhan ke Dohe को अर्थ समेत बताएंगे।
रसखान के दोहों को अर्थ समेत – Raskhan ke Dohe with Meaning
रसखान का दोहा नंबर 1- Raskhan ke Dohe 1
इस दोहे के माध्यम से महाकवि रसखान से भगवान श्री कृष्ण के अत्यंत सुंदर और मनोरम रूप का वर्णन किया है।
दोहा:
देख्यो रुप अपार मोहन सुन्दर स्याम को
वह ब्रज राजकुमार हिय जिय नैननि में बस्यो।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि अति सुंदर ब्रज के राजकुमार श्री कृष्ण उनके हृदय, मन, मिजाज,जी, जान और आंखों में निवास बना कर बस गए हैं।
रसखान का दोहा नंबर 2 – Raskhan ke Dohe 2
इस दोहे में रसखान जी ने श्री कृष्ण को छवीला कहकर संबोधित किया है जो कि सुंदर गोपियों को अपने नटखट अंदाज में छेड़ते हैं –
दोहा:
अरी अनोखी बाम तूं आई गौने नई
बाहर धरसि न पाम है छलिया तुव ताक में।
दोहे का अर्थ:
इसमें रसखान जी गोपियों से कहते हैं कि – अरी अनुपम सुन्दरी तुम नयी नवेली गौना द्विरागमन कराकर ब्रज में आई हो, क्या तुम्हें मोहन का चाल-ढाल मालूम नहीं है। अगर तुम घर के बाहर पैर रखी तो समझ लो-वह छलिया तुम्हारी ताक में लगा हुआ है। पता नहीं कब वह तुम्हें अपने प्रेम जाल में फांस लेगा।
रसखान का दोहा नंबर 3 – Raskhan ke Dohe 3
इस दोहे में कवि रसखान जी इस दोहे के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन करने की इच्छा प्रकट करते हैं –
दोहा:
प्रीतम नंद किशोर जा दिन तें नैननि लग्यौ
मन पावन चितचोर प़त्रक ओट नहि सहि सकौं।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी ने कहा है कि जबसे उनकी आंखे उनके प्रियतम श्रीकृष्ण से मिली हैं। तब से उनका मन परम पवित्र हो गया है और अब वे उनका मन उनके अलावा कहीं और नहीं लगता है और हमेशा उनका मन श्री कृष्ण को पूरी तरह से देखने के लिए व्याकुल रहता है।
रसखान का दोहा नंबर 4 – Raskhan ke Dohe 4
इस दोहे के माध्यम से कृष्ण भक्ति में डूबे रहने वाले कवि रसखान ने भगवान श्री कृष्ण के अति सुंदर और मनोहर रूप की व्याख्या की है –
दोहा:
या छवि पै रसखान अब वारौं कोटि मनोज
जाकी उपमा कविन नहि पाई रहे कहुं खोज।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में रसखान जी कहते हैं कि श्री कृष्ण के अति सुंदर और मनोहर रुप पर करोंड़ो कामदेव न्योछावर हैं, वहीं उनकी तुलना विद्धान कवि भी नहीं खोज पा रहे हैं अर्थात श्री कृष्ण के सौन्दर्य रूप की तुलना करना संभव नहीं है।
रसखान का दोहा नंबर 5 – Raskhan ke Dohe 5
इस दोहे में श्री कृष्ण की मुस्कराहट के भाव का वर्णन किया है कि किस प्रकार जब कृष्ण मुस्कराते हैं तो चारों तरफ प्रेम की बारिश होने लगती है –
दोहा:
जोहन नंद कुमार को गई नंद के गेह
मोहि देखि मुसिकाई के बरस्यो मेह सनेह।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में महाकवि रसखान जी कहते हैं कि जब वे श्री कृष्ण से मिलने उनके घर गए तब उन्हें देखकर श्री कृष्ण इस तरह मुस्कुराये जैसे लगा कि उनके स्नेह प्रेम की बारिश चारों तरफ होने लगी। इसके साथ ही श्याम का स्नेह रस हर तरफ से बरसने लगा।
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रसखान का दोहा नंबर 6 – Raskhan ke Dohe 6
इस दोहे के माध्यम से कवि रसखान जी ने लोगों को श्री कृष्ण की भक्ति का बोध कराने की कोशिश की है, इसमें कवि कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण के दर्शन मात्र से ही सारे दुख-दर्द अपने आप ही दूर हो जाते हैं –
दोहा:
ए सजनी लोनो लला लह्यो नंद के गेह
चितयो मृदु मुसिकाइ के हरी सबै सुधि गेह।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में महाकवि रसखान जी कहते हैं कि हे प्रिय सजनी श्याम लला के दर्शन का विशेष लाभ है। जब हम नंद के घर जाते हैं तो वे हमें मधुर मुस्कान से देखते हैं और हम सब की सुधबुध हर लेते हैं अर्थात हमारी सारी परेशानियों का हल निकल जाता है।
रसखान का दोहा नंबर 7 – Raskhan ke Dohe 7
इस दोहे में रसखान जी ने श्री कृष्ण के अति सुंदर रूप का वर्णन किया है।
दोहा:
मोहन छवि रसखानि लखि अब दृग अपने नाहिं
उंचे आबत धनुस से छूटे सर से जाहिं।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में रसखान कहते हैं कि मदन मोहन कृष्ण की सुंदर रुप छटा देखने के बाद अब ये आँखें मेरी नही रह गई हैं जिस तरह धनुष से एक बार बाण छूटने के बाद अपना नही रह जाता है। और तीर फिर दोबारा लौटकर नहीं आताहै, वापिस नही होता है।
रसखान का दोहा नंबर 8 – Raskhan ke Dohe 8
इस दोहे के माध्यम से कवि रसखान जी अपनी आस्था को श्री कृष्ण के प्रति व्यक्त किया है और कहा कि उन्होनें पूरी तरह से अपना मन श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया है।
दोहा:
मन लीनो प्यारे चितै पै छटांक नहि देत
यहै कहा पाटी पढी दल को पीछो लेत।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान कहते हैं उनका मन प्रियतम श्रीकृष्ण ने ले लिया है लेकिन इसके बदले उन्हें इसका कुछ भी नहीं मिला है। इसके साथ ही कवि कहते हैं कि उन्होंने यही पाठ पढ़ा है कि पहले अपना सर्वस्व दो तब मुझसे कुछ मिलेगा।
रसखान का दोहा नंबर 9 – Raskhan ke Dohe 9
इस दोहे में कवि रसखान जी ने अपने मन को पूरी तरह भगवान श्री कृष्ण को न्योछावर करने की बात कही है –
दोहा:
मो मन मानिक लै गयो चितै चोर नंदनंद
अब बेमन मैं क्या करुं परी फेर के फंद।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी प्रेम भावना उजागर करते हुए कहते हैं कि मेरे मन का माणिक्य रत्न तो चित्त को चुराने बाले नन्द के नंदन श्री कृष्ण ने चोरी कर लिया है। अब बिना मन के वे क्या करें। वे तो भाग्य के फंदे के-फेरे में पड़ गये हैं। अब तो बिना समर्पण कोई उपाय नही रह गया है। अर्थात जब उनका मन ही श्री कृष्ण के पास है तो वे पूरी तरह से समर्पित हो चुके हैं।
रसखान का दोहा नंबर 10 – Raskhan ke Dohe 10
इस दोहे में रसखान ने श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि जब वे श्री कृष्ण को देखते हैं तो उनका हद्य प्रफुल्लित हो जाता है-
दोहा:
बंक बिलोचन हंसनि मुरि मधुर बैन रसखानि
मिले रसिक रसराज दोउ हरखि हिये रसखानि।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि तिरछी नजरों से देखकर मुस्कुराते और मीठी बोली बोलने बाले मनमोहन कृष्ण को देखकर उनका हृदय आनन्दित हो जाता है। अर्थात जब रसिक और रसराज कृष्ण मिलते हैं तो हृदय में आनन्द का प्रवाह होने लगता है।
रसखान का दोहा नंबर 11 – Raskhan ke Dohe 11
इसमें कवि रसखान से श्री कृष्ण के अति मनोरम बाल लीलाओं का वर्णन किया है। इसके साथ ही प्रभु कृष्ण के हाथ से माखन रोटी छीनने वाले कौवे के भाग्य की सराहना की है –
दोहा:
काग के भाग बडे सनती हरि हाथ सौं ले गयो माखन रोटी।
दोहे का अर्थ:
कृष्ण की बाल लीलाएं अत्यंत मनोहारी हैं। रसखान ने उन्हें परमात्मा के स्वरुप में पहचान लिया है। उन्होनें उस कौवे के भाग्य की सराहना की है, जिसने प्रभु के हाथ से माखन रोटी लेने का सौभाग्य प्राप्त किया है।
रसखान का दोहा नंबर 12 – Raskhan ke Dohe 12
इस दोहे में रसखान ने श्री कृष्ण के प्रति अपनी मन की भावना को प्रकट किया है –
दोहा:
काह कहूं रतियां की कथा बतियां कहि आबत है न कछू री
आइ गोपाल लियो करि अंक कियो मन कायो दियौ रसबूरी।
दोहे का अर्थ:
इस दोहे में कवि रसखान जी कहते हैं कि रात की बात क्या कही जाए। कोई बात कहने में नही आती है। श्रीकृष्ण आकर मुझे अपने गोद में भर लिया और मेरे साथ खूब मनमानी करने लगे। मेरे मन एवं शरीर में आनन्द से रस का सराबोर हो गया।
रसखान का दोहा नंबर 13 – Raskhan ke Dohe 13
रसखान प्रेमी भक्ति कवि थे और इस दोहे में उन्होंने श्री कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को उजागर किया है –
दोहा:
तब बा वैश्णवन की पाग में श्री नाथ जी का चित्र हतैा
सो काठि के रसखान को दिखायो
तब चित्र देखत हीं रसखान का मन फिरि गयो।
दोहे का अर्थ:
उन वैश्णवों के हाथों में जो श्री कृष्ण का चित्र था उसे निकाल कर उन्होंने जब रसखान को दिखाया, तो उसे देखते हीं उनका मन चित्त हृदय परिवर्तित हो गया और वे संसार से विमुख होकर श्री कृष्ण के प्रेम में मग्न हो गये।
रसखान का दोहा नंबर 14 – Raskhan ke Dohe 14
कवि रसखान के इस दोहे में उनकी कृष्ण भक्ति की झलक को स्प्ष्ट देखा जा सकता है –
दोहा:
जैसो शिंगार वा चित्र में हतो तैसोई वस्त्र आभूशन अपने श्रीहस्त में धारण किए गाय ग्वाल सखा सब साथ लै के आप पधारे।
दोहे का अर्थ:
चित्र में श्रीकृष्ण का जैसा श्रृंगार था कृष्ण ठीक उसी प्रकार का वस्त्र आभूषण पहन कर पीताम्बर रूप में अपने ग्वाल बाल गोपों के साथ वे रसखान से मिलने गोपीकुंड पहुंच गये, जहां रसखान बैठकर कृष्ण के प्रेम में आंसू बहा रहे थे।
रसखान का दोहा नंबर 15 – Raskhan ke Dohe 15
इसमें कवि रसखान ने श्री कृष्ण की के गोकुलधाम में बसने का जिक्र किया है –
दोहा:
प्रेम निकेतन श्रीबनहिं आई गोबर्धन धाम
लहयौ सरन चित चाहि के जुगल रस ललाम।
दोहे का अर्थ:
रसखान श्रीकृष्ण के लीला धाम वृंदावन आ गये और अपने हृदय चित्त एवं मानस में राधाकृष्ण को बसाकर उनके प्रेमरस में डूब गए।
रसखान का दोहा नंबर 16 – Raskhan ke Dohe 16
इसमें प्रेम भक्ति कवि रसखान जी ने प्रेम को हरि का रूप या पर्याय बताया है –
दोहा:
प्रेम हरि को रुप है त्यौं हरि प्रेमस्वरुप
एक होई है यों लसै ज्यों सूरज औ धूप।
दोहे का अर्थ:
रसखान प्रेमी भक्त कवि थे। वे प्रेम को हरि का रुप या पर्याय मानते हैं और ईश्वर को साक्षात प्रेम स्वरुप मानते हैं। प्रेम एवं परमात्मा में कोई अन्तर नहीं होता जैसे कि सूर्य एवं धूप एक हीं है और उनमें कोई तात्विक अन्तर नहीं होता।
निष्कर्ष:
प्रेमी भक्ति कवि रसखान जी ने जिस तरह कृष्ण की महिमा का वर्णन अपने दोहों में किया है और अपनी प्रेम भावनाओं को अपने प्रभु के लिए प्रकट किया है।
वो वाकई सरहानीय है, ऐसा तो सिर्फ कृष्ण के प्रेम रस में डूबा कवि ही कर सकता है अर्थात इनके दोहों को पढ़कर कृष्ण भक्तों का मन अभिभूत हो गया। इस तरह रसखान ने लोगों को कृष्ण भक्ति का बोध कराया है।
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