रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया!

Swapna Barman

“जितना कठिन संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी!”

इस बात को साबित कर दिखाया है एशियाई खेलों में हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीतने वाली स्वप्ना बर्मन ने। इनके मजबूत इरादे और प्रतिभा के आगे इनकी मुसीबतों ने भी घुटने टेक दिए।

Swapna Barman
Swapna Barman

रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया – Swapna Barman Biography Success Story

स्वप्ना बर्मन का जन्म 29 अक्टूबर 1996 में पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में एक गरीब परिवार में हुआ था। स्वप्ना के पिता रिक्शा चलाते हैं और उनकी माता चाय के बगीचों से चाय की पत्तियां तोड़ने का काम करती हैं। स्वप्ना के लिए यहां तक कि राह आसान नहीं थी लेकिन तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी मंज़िल हासिल कर ही ली।

स्वप्ना ने हिम्मत से हर संघर्ष का सामना किया और एशियाई खेलों में सफलता प्राप्त की। उन्होंने जलपाईगुड़ी में अपने घर के पास ही स्कूल के मैदान में दौड़ना शुरू किया और कड़ी मेहनत की। उनकी कड़ी मेहनत का ही नतीजा है कि उन्होनें एशियाई खेलों में सोने का तमगा जीत लिया और देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।

बचपन से ही ट्रेनिंग करने लगी थी स्वप्ना बर्मन बचपन में जब स्वप्ना अपनी ट्रेनिंग कर रही थीं तो उनकी माता अपने काम पर जाते हुए उन्हें मैदान में छोड़ देती थीं और शाम को काम से लौटते हुए उन्हें उसी मैदान से साथ लेते हुए घर आती थीं।

एक छोटे से घर से शुरुआत करके स्वप्ना ने एशियाई खेलों में हेप्टाथलान इवेंट में भारत को पहला गोल्ड मेडल दिलवाया और अपने गांव का ही नहीं बल्कि पूरे देश का मान बढ़ाया है।

स्वप्ना के जिंदगी संघर्षों की लंबी कहानी है। उनकी जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष आए लेकिन स्वपना अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए पूरी सच्ची लगन के साथ जुटी रहीं और आज इस मुकाम को हासिल किया।

स्वपना के परिवार में उस समय और भी गहरा संकट आ गया जब स्वप्ना बर्मन के पिता को 2013 में दौरा पड़ा जिसके बाद वे बीमार रहने लगे और उनके पिता ने बिस्तर पकड़ लिया। जिससे स्वप्ना बर्मन और भाई-बहनों का जीवन और भी मुश्किल में पड़ गया।

यहां तक की अब उनके 6 सदस्य के परिवार के लिए दो वक्त का खाना तक नसीब होना बहुत बड़ी थी। इसके बाद स्वपना ने अपने परिवार की जिम्मेदारी संभालने का फैसला लिया।

स्वप्ना बर्मन अपने परिवार की देखभाल करने के लिए अपने पुरस्कार राशि का इस्तेमाल करती हैं। और कच्ची दीवार के बने घर में रहकर गुजारा करती हैं।

साल 2016 में स्वप्ना बर्मन ने एथलेटिक्स प्रतियोगिता में कामयाबी हासिल करने के बाद उन्हें 150,000 रुपए की स्कॉलरशिप जीती थी। वे अभी कोलकाता में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया कैंपस में ट्रेनर भी हैं।

आपको बता दें कि स्वप्ना बर्मन ने 2018 एशियाई खेलों में महिलाओं की हेप्टाथलान इवेंट में भारत की झोली में स्वर्ण पदक डाला जबकि उनके जबड़े में चोट भी थी, वे दर्द से बेहद परेशान थी।

यही नहीं उनके पैर की 12 उंगलियों की वजह से उनकी साइज के जूते नहीं मिलने से झेल रही परेशानी के बाबजूद भी उन्होनें अपने लक्ष्य को पूरा किया। और बर्मन ने एशियाई खेलों में 6026 अंकों के साथ स्वर्ण पदक पर कब्जा कर पहली भारतीय के तौर पर रिकॉर्ड बनाया।

स्वप्ना बर्मन को 2017 में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में हेप्टाथलॉन में रखा गया था। इसके साथ ही स्वप्ना बर्मन की राहुल द्रविड़ एथलीट मेन्टरशिप प्रोग्राम के माध्यम से गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन द्वारा मद्द की जाती है।

दिग्गज खिलाड़ी स्वप्ना बर्मन, जिसने दर्द को सहन करने के लिए अपने सूजे हुए दाहिने जबड़े के चारों तरफ एक किनेसियो टेप लगाया था और अपने दर्द को दरकिनार कर अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए देश को स्वर्ण पदक दिलवाया।

स्वप्ना बर्मन ने इसके अलावा भी 100 मीटर में हीट-2 में 981 अंकों ऊंची कूद में 1003 के साथ चौथा स्थान हासिल किया था। गोला फेंक में वो 707 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहीं। 200 मीटर रेस में उन्होंने हीट-2 में 790 अंक लिए। इसके साथ ही वे खेलों में 6,000 अंक हासिल करने वाली पांचवीं महिला एथलीट भी बन गई।

जलपाईगुड़ी से जकार्ता की यात्रा ‘द क्वीन ऑफ हेप्टाथलॉन’ के लिए इतनी आसान नहीं थी। अपनी पिता की बीमारी के बाद स्वपना ने अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठाने का फैसला किया और वो जानती थी कि वे अपने खेल के जुनून से इस जिम्मेदारी को निभाने में सफल हो पाएगी।

अपने जोश और जुनून के आगे स्वपना वर्मा ने कठिन से कठिन मुश्किलों का सामना कर जीत हासिल कर ली।

खेल में उनके प्रभावशाली प्रदर्शन और उनके सच्चे दृढ़संकल्प से अपने राज्य में एथलेटिक समुदाय को प्रभावित किया। इसके साथ ही स्वप्ना बर्मन से प्रभावित होकर उनके वर्तमान कोच सुभाष सरकार ने उन्हें ट्रेनिंग देने का फैसला भी लिया।

यही वजह है कि आज उन्होनें खेलों में मिलने वाले सर्वोच्च पदक को देश के नाम कर लिया। आपको बता दें कि यह उस वक्त की बात है जब उसने मलेशिया में एशियाई स्कूल खेलों में तीन स्वर्ण पदक जीते थे। स्वप्ना बर्मन बचपन से ही अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरती आई हैं।

2013 में, स्वप्ना बर्मन ने कविता मुथन्ना के 2004 के राष्ट्रीय रिकॉर्ड को तोड़ दिया। उसी साल, बेंगलुरू के श्री कोंटेरवा स्टेडियम में 29वीं राष्ट्रीय जूनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में, उन्होंने हेप्टाथलॉन को 1.71 मीटर की ऊंची छलांग के साथ घुमाया, और काव्या के 1.70 मीटर के पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

फिलहाल स्वपना वर्मा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन दिखाकर पूरी दुनिया में भारत का सिर गर्व से ऊंचा किया है और बाकी महिलाओं के लिए मिसाल कायम की है।

Read More:

  1. Inspiring Entrepreneurs Story
  2. ऑटो रिक्शा चालक का बेटा बन गया IAS अधिकारी
  3. PT Usha Biography
  4. Wrestler Sakshi Malik Biography

Hope you find this post about ”Swapna Barman” Inspiring. if you like this Article please share on Facebook & Whatsapp. and for latest update download: Gyani Pandit free Android app.

10 thoughts on “रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया!”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top