वी. एस. नायपाल जीवनी

V S Naipaul – वी. एस. नायपाल ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया है, आज भी उनमें नए-नए विषयों पर लिखने की इच्छा बनी हुई है और वे लिख भी रहे हैं, उन्होंने एक महान लेखन बनकर अपने पिता के सपने को साकार किया है।

वी. एस. नायपाल जीवनी – V S Naipaul Biography in Hindi

V S Naipaul

वी. एस. नायपाल के बारेमें – V S Naipaul Information in Hindi

पूरा नाम (Name) विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल
जन्म (Birthday) 17 अगस्त, 1932
जन्मस्थान (Birthplace) त्रिनिदाद
पिता (Father Name) सूरज प्रसाद
शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, लंदन से स्नातक
विवाह
  • 23 वर्ष की उम्र में अंग्रेज लड़की पेट्रिका एन हेल से विवाह बाद में तलाक।
  • इस समय पाकिस्तान की मुस्लिम पत्रकार नादिरा उनकी पत्नी है।

वी. एस. नायपाल का इतिहास – V S Naipaul History in Hindi

विद्याधर को ही आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर वी. एस. नायपाल के नाम से जाना जाता है, उनके दादा जी भारत के ढाका नमक नगर के निवासी थे, ढाका अब बांग्लादेश में जाता है, उनका परिवार एक ब्राह्मण परिवार था, 20वीं शताब्दी के आरंभ में उनके दादा भारत छोड़कर रोजगार की तलाश में त्रिनिदाद आए और परिवार सहित वहीँ बस गए।

V S Naipaul के पिता सूरज प्रसाद एक अच्छे पत्रकार और लेखक थे, वे अपने पुत्र विद्याधर को एक सफल लेखक बनाना चाहते थे, सन 1948 में सूरज प्रसाद का परिवार स्पेन बंदरगाह के पास आकर रहने लगा था, उन्होंने स्पेन के क्वींस रॉयल कॉलेज में पढाई की, पठन-पाठन के दौरान उनमे तरह-तरह की जिज्ञासाएं उठती थीं और नई-नई चीजों को जानने के लिए बेताब रहते थे, सूरज प्रसाद चाहते थे कि साहित्य के क्षेत्र में जो कार्य मैं नहीं कर सका, वह कार्य मेरा बेटा विद्याधर कर दिखाए।

विद्याधर को वे एक महान साहित्यकार बनाना चाहते थे, मेरा मानना है की महान लेखक इसी प्रकार लिखते हैं, उन पर लिखने की ऐसी धुन सवार होती है कि वे लिखते ही जाते हैं, उनकी कलम रुकने का नाम नहीं लेती, क्योंकि संपादक उनकी रचना का इंतजार कर रहा होता है, लेखक के पास जब काम नहीं होता तब वह ढीला दिखाई पड़ता है, लेकिन काम से जुड़ते ही वह उसमें पूरी तरह से रम जाता है, उसे खान-पान की भी कोई सुध नहीं रहती।

विश्राम करने के लिए वह फूलों के बगीचे में जाता है और वहां की सुंदरता को देखता है, उसके बाद वह फिर अपने लेखन में डूब जाता है, मैं अभी तक इसी तरह लिखता आया हूं, यदि मेरे लेखन में कोई व्यवधान न आए तो मैं 6 महीने में एक शानदार उपन्यास लिख सकता हूं।

‘प्रिय पुत्र,

मैं चाहता हूं कि तुम भी मेरी तरह लिखकर देखो, लेकिन अभी नहीं, अपनी पढाई पूरी करने के बाद, मेरी हार्दिक इच्छा है कि तुम लिखो, लेखन के क्षेत्र में जो उपलब्धि मैं प्राप्त नहीं कर सका, उसे तुम हासिल करके दिखाओ, मैं पुरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि दो-तीन वर्ष की साहित्य साधना से तुम सफलता के शिखर पर पहुंच जाओगे, पढाई पूरी करने के बाद यदि तुम घर नहीं आ सकते, तो कोई बात नहीं, भविष्य में तुम्हें जब भी मौका मिले, लेखन से जरुर जुड़ना, मेरा दिल कहता है की लेखन ही तुम्हें अपने जीवन में पूर्ण संतुष्टि दे सकता है, इस क्षेत्र में उच्च स्थान पाकर तुम जो खुशी प्राप्त कर सकते हो, वह खुशी तुम्हे और किसी काम से नहीं मिल सकती, इसलिए मेरी इन बातों पर गौर करना और भविष्य में एक बार जरुर लेखन से जुड़कर देखना।’

मृत्यु अटल और सत्य है, इस पर किसी का कोई अधिकार नहीं है, मनुष्य अपने कर्मों से भाग्य को बदल सकता है, मगर वह अपनी मृत्यु को नहीं बदल सकता, सन 1953 में सूरज प्रसाद को दिल का दौरा पड़ा और वे मात्र 47 वर्ष की ही उम्र में स्वर्ग सिधार गए, पिता की मृत्यु से विद्याधर को गहरा आघात पहुंचा, उन्हें इस बात का बेहद अफसोस था कि वे अपने पिता की इच्छा को उनके जीते जी पूरा नहीं कर सके, विद्याधर ने उनके पंचतत्व रचित शरीर को साक्षी मानकर यह दृढ़ निश्चय किया कि मैं पिता के सपने को हर हाल में पूरा करूंगा, मैं विश्व साहित्य के क्षेत्र में वो काम कर जाऊंगा, जिससे कि आत्मा को शांति मिलेगी।

अब एक महान लेखक बनना विद्याधर के जीवन का एक मिशन बन गया, उस समय उनकी आयु 21 वर्ष थी, तीन वर्ष पहले वे एक उपन्यास लिख चुके थे, मगर उसका प्रकाशन नहीं हो पाया, विद्याधर ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय लंदन से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की, उसके बाद वे लेखन से जुड़ गए, उन्होंने लंदन में रहकर पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में संघर्ष करना शुरू कर दिया।

सन 1954 में बी.बी.सी. की ‘कैरेबियम वायस’ में उन्हें एक पत्रकार के रूप में काम करने का मौका मिला, पूर्ण मनोयोग से उन्होंने वहां काम किया और सन 1957 में एक साहित्यिक पत्रिका ‘द न्यू स्टेट्समैन’ से जुड़ गए, इसी वर्ष उनका पहला उपन्यास ‘द मिस्टिक मेस्युर’ प्रकाशित हुआ, इससे उनका नाम उपन्यासकारों की सूची में दर्ज हो गया, लेकिन उन्हें आर्थिक रूप से कोई विशेष फायदा नहीं हुआ, अगले वर्ष सन 1958 में उनका दूसरा उपन्यास ‘द सफरेज ऑफ एलविरा’ बाजार में आया, उसके बाद उनकी लेखनी लगातार चलती रही।

उनका उपन्यास ‘द मिस्टिक मेस्यूर’ पर त्रिनिदाद में एक फिल्म का निर्माण किया गया था, इस फिल्म को देखकर वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री पाण्डे बहुत खुश हुए थे, भारतीय सभ्यता और संस्कृति पर विद्याधर ने तीन पुस्तकों की रचना की है, जिनके नाम ‘एन एरिया ऑफ डार्कनेस’, ‘ऐ वुन्डेड सिविलाइजेशन’ और ‘ए मिलियन म्यूटिनीज नाउ’ हैं।

विद्याधर की सबसे अधिक विवादस्पद पुस्तक ‘बियान्ड द बिलिफ: इस्लामिक इक्सकर्सन एमंग द कनवर्तेद पीपल’ है, इसमें भारत में हिंदुओं के धर्म परिवर्तन का जिक्र किया गया है, जबरन मुसलमान बनाने की प्रक्रिया पर विद्याधर ने बड़े विस्तार से लिखा है, उनका इस प्रकार का लेखन भारत और विश्व के मुस्लिम समुदाय को बहुत बुरा लगा, लेकिन विद्याधर खुलकर लिखने में माहिर हैं।

उन्होंने लिखा है कि भारत और त्रिनिदाद अंधकार वाले वे देश हैं, जहां ज्ञान के प्रकाश की बातें तो होती हैं, लेकिन सच्चाई सामने आने पर यह पता चलता है की अच्छी प्रतिभाओं के साथ अनदेखी की गई है, ऐसे देशों में रहकर एक आम आदमी भला तरक्की कैसे कर सकता है, विद्याधर ने भारतीय समाज की खामियों का वर्णन करके देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, जिसके बारे में पढ़ने के बाद यही लगता है की उन्होंने अपने मूल देश का अपमान किया है।

जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह ने उनके बेबाक लेखन का जिक्र करते हुए लिखा है की V S Naipaul उन लेखकों में से नहीं हैं जो खुलकर लिखने से कतराते हैं, बाबरी मस्जिद गिरने के बाद देश-दुनिया के तमान लेखकों और विव्दानों ने उसकी निंदा की थी, लेकिन विद्याधर ने कोई निंदा नहीं की, विवाह के पीछे उनका यह उद्देश्य था कि ब्रिटिश समाज में मेरी पहचान बन जाएगी, लेकिन ब्रिटिश समाज में ही नहीं बल्कि पुरे विश्व में उनकी पहचान बनी।

11 अक्टूबर, सन 2001 को जब वे नोबेल पुरस्कार के लिए चुने गए तो उनकी अंतराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखकों में होने लगी, सन 1971 से 2001 तक कई बार उनका नाम इस पुरस्कार के लिए उछाला जा चूका था, वास्तविक रूप में इस पुरस्कार के लिए जब उनके नाम की घोषणा हुई तो उनके पारिवारिक सदस्यों को विश्वास ही नहीं हुआ, विद्याधर को 2001 के दिसंबर महीने में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ।

आज वे पाकिस्तान की एक मुस्लिम पत्रकार नादिरा के पति हैं, भारत में उन्हें जब भी आने का मौका मिलाता है, वे नादिरा के साथ आते हैं, वैसे वे ब्रिटेन के नागरिक हैं और सपरिवार वहीँ पर बस गए हैं, साहित्यिक जगत के शिखर पर पहुंचने वाले वी.एस. नायपाल को भी भुलाया नहीं जा सकता, विश्व समाज में उनका नाम आज, कल और हमेशा अमर रहेगा.

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