‘महाभारत’ के रचयिता वेद-व्यास जी का जीवन परिचय

Ved Vyasa

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक महाकाव्य ‘महाभारत’, के रचयिता के रुप में वेद व्यास जी जाने जाते हैं। वह बेहद ज्ञानी और दूरदर्शी महर्षि थे। उन्होंने अपने अथाह ज्ञान का इस्तेमाल कर वेद को भी चार हिस्सों में बांट दिया है जो कि ऋग्वेद, युजर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद हैं, इसलिए उन्हें चार वेदों के प्रथम व्याख्याता के रुप भी पहचाना जाना है।

यही नहीं उन्होंने अपने महान विचारों से 18 महापुराण और उपपुराणों की भी रचना की। महान ऋषि वेद व्यास महान योगी साधक के रुप में भी नहीं बल्कि जो की ईश्वर के अवतार भी माना जाता था।

हमारे आदिगुरु और हिन्दू महाकाव्य महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी के जन्म, उनके जीवन के बारे में हम आपको आज अपने इस लेख में बताएंगे इसके साथ ही उनके द्धारा बताए गए अनमोल विचारों के बारे में भी बताएंगे।

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‘महाभारत’ के रचयिता वेद-व्यास जी का जीवन परिचय – Ved Vyasa

नाम (Name) महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास (Vyasa)
माता का नाम (Mother Name) सत्यवती (मत्स्यगंधा)
पिता का नाम (Father Name) ऋषि पराशर

वेदव्यास जी बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और आसाधारण बौद्धिक क्षमताओं वाले व्यक्ति थे, वे किसी भी विषय को बेहद जल्दी और एक ही बार में समझ जाते थे, वेदव्यास जी पर अपने पिता महर्षि पराशर के गुण आ गए थे, वे अपने पिता पराशर को अपना गुरु भी मानते थे, उन्हें अपने पिता से भी ज्ञान प्राप्त किया था, वेदों का ज्ञान लेने के बाद ही वे वेद-पुराण में पारंगत हो गए थे।

यही नहीं महज 16 साल की उम्र में ही अपनी अद्भुत और आसाधारण बौद्धिक क्षमता के माध्यम से धार्मिक कामों की शुरुआत कर दी थी। उन्हें छोटी सी उम्र में ही समस्त शास्त्रों, वेदों और पुराणों का ज्ञान हो गया था, उस समय उनकी बराबरी करने वाला अन्य कोई नहीं था।

वेदों का विस्तार

अपने अतुलनीय ज्ञान और वेदों का विस्तार करने की वजह से उन्हें वेदव्यास के नाम से जाना जाने लगा। इसके साथ ही बदरीवन में निवास करने के कारण उन्हें बादरायण के नाम से भी लोग पुकारते थे। आपको बता दें कि अपने अतुल्य ज्ञान की बदौलत वेद व्यास जी ने चारो वेदों के विस्तार के साथ-साथ 18 महापुराणों और ब्रह्मसूत्र की भी रचना की।

भगवान विष्णु के अवतार के रुप में वेद-व्यास

हिन्दू पुराणों के मुताबिक भगवान विष्णु ने ही व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था वहीं जब वेद व्यास जी ने धर्म का विनाश और ह्रास होते हुए देखा था तो इन्होंने वेदों को चार अलग-अलग हिस्सों में विभाजित कर दिया और वह वेदव्यास कहलाए जाने लगे।

वेदों का विभाग कर उन्होंने अपने शिष्य सुमन्तु, पैल, वैशम्पायन और जैमिनी तथा पुत्र शुकदेव को उनका अध्ययन कराया। इसके साथ ही महाभारत का उपदेश दिया। इनकी चमत्कारिक दैवीय शक्ति और अलौकिक प्रतिभा की वजह से लोग इन्हें भगवान विष्णु के अवतार के रुप में जानते हैं, इसके साथ ही वेदव्यास जी को संसार में ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने के लिए भी जाना जाता है।

गुरुपूर्णिमा के दिन मनाई जाती है व्यास जयंती

हिन्दू धर्म के महाकाव्य महाभारत, 18 पुराण, श्रीमद्भागवत, ब्रह्मसूत्र, मीमांसा जैसे अद्वितीय साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास जी का जन्म आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को हुआ था, इसलिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा और व्यास जी की जयंती के रुप में भी मनाया जाता है। उन्हें गुरुओं के गुरु भी कहा जाता है।

वेदव्यास जी के महान और अनमोल विचार – Ved Vyas Quotes in Hindi

महाभारत के रचयिता वेदव्यास जी के कुछ महान विचारों के बारे में हम आपको नीचे बताने जा रहे हैं, वहीं जो कोई भी इन विचारों को अपने जिंदगी में अमल करता है, वो अपने जीवन में सफलता अर्जित करता है।

  • किसी का सहारा लिए बिना कोई ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकता, इसलिए किसी प्रधान आश्रय का सहारा लेना चाहिए।
  • जीतने की इच्छा रखने वाले शूरवीर अपने साहस, पराक्रम और बल से वैसी जीत हासिल नहीं कर पाते, जिस तरह सत्य, धर्म, सज्जनता, और उत्साह के माध्यम से हासिल कर लेते हैं।
  • शूरवीरता, विद्या, बल, दक्षता, और धैर्य, ये पांच मनुष्य के स्वाभाविक मित्र हैं। यह हर बुद्धिमान और महापुरुष में देखने को मिलते हैं।
  • धर्म का पालने करने पर जिस धन की प्राप्ति होती है, उससे बढ़कर कोई धन नहीं है।
  • न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु। स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक-दूसरे से बंधे हुए हैं।
  • निरोगी रहना, ऋणी न होना, अच्छे लोगों से मेल रखना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निर्भय होकर रहना- ये मनुष्य के सुख हैं।
  • राजा की स्थिति प्रजा पर ही निर्भर होती है। जिसे पुरवासी और देशवासियों को प्रसन्न रखने की कला आती है, वह राजा इस लोक और परलोक में सुख पाता है।
  • सत्पुरुष दूसरों के उपकारों को ही याद रखते हैं, उनके द्वारा किए हुए बैर को नहीं।
  • सदाचार से धर्म पैदा होता है और धर्म से आयु बढ़ती है।
  • विद्या के समान कोई नेत्र नहीं है।
  • जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है और जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूरी तरह समझ नहीं सकता।
  • क्षमा धर्म है, क्षमा यज्ञ है, क्षमा वेद है और क्षमा शास्त्र है। जो इस प्रकार जानता है, वह सब कुछ क्षमा करने योग्य हो जाता है।
  • मन में संतोष और धैर्य होना स्वर्ग की प्राप्ति से भी बढ़कर है, संतोष ही मानव जीवन का सबसे बड़ा सुख है। संतोष यदि मन में भली-भांति प्रतिष्ठित हो जाए तो उससे बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है।
  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ औषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना।

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