नवग्रह मंदिर की पूरी जानकारी | Navagraha Temples in Kumbakonam

Navagraha Temples

ब्रह्मांड की जब निर्मिती हुई थी उस वक्त सबसे पहले सूर्य समेत सभी ग्रहो की निर्मिती हुई थी। उसमें सबसे पहले सूर्य की निर्मिती हुई और इसके बाद सभी ग्रह अपने आप बनते गए। लेकिन जब यह ग्रह बने तो उनके साथ में इन नौ ग्रहों के देवता भी जन्म ले चुके थे। ब्रह्माण्ड में जितने नौ ग्रह है उनके नौ ग्रहों के नौ देवता भी है। इन नौ ग्रहों की दशा और दिशा के आधार पर लोगो का भविष्य निर्भर करता है साथ ही उनकी बारा राशिफल का भी पता लग जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु (साप का सिर) और केतु (साप की पूछ) को उत्तर दिशा और दक्षिण दिशा समझा जाता है और बाकी के जो नौ ग्रह है साफ़ तरीके से दिखाई देते है जिसमे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह शामिल है।

इन सभी ग्रहों के दक्षिण भारत में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है। इस सभी देवताओ के मंदिरों की सूची निचे दी गयी है। लेकिन इन सब मंदिरों में सबसे मुख्य केंद्र तमिलनाडू के कुम्बकोनाम में स्थित है। इन सब ग्रहों के देवताओ के मंदिर की पूरी जानकारी निचे विस्तार से दी गयी है।

नवग्रह मंदिर की पूरी जानकारी – Navagraha Temples in Kumbakonam

Navagragha Temple
Source: Navagragha Temple

नौ ग्रहों के नाम – Navagraha Names

  • सूर्य
  • चन्द्र
  • अंगारक (मंगल)
  • बुध
  • गुरु
  • शुक्र
  • शनि
  • राहु
  • केतु

नवग्रह मंदिर – Navagraha Temple

1.सुरियानर कोइल – Suryanar Kovil

यह भारत का एक बहुत ही प्राचीन मंदिर है और नवग्रहों में से एक है जो तमिलनाडु में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण सन 1100 में चोल राजा कुलोठुंगा 1 ने करवाया था और यह मंदिर भगवान सुरियन यानि सूर्य को समर्पित है। इस मंदिर में सूर्य देव के साथ में उनकी पत्नी प्रत्युषा देवी और उषा देवी भी है। हिन्दू धर्म के खगोल विज्ञान के अनुसार यहाँपर अन्य ग्रहों के देवताओ के भी अलग अलग मंदिर है।

इस मंदिर को द्रविड़ वास्तुकला मे बनाया गया और यहापर पाच मंजिली राजगोपुरम बनाया गया है। यहापर एक बहुत बड़ा प्रवेशद्वार है और यहाँ की सारी दीवारे ग्रेनाइट से बनाई गयी है। यहापर सूर्यदेव की पूजा करने के लिए पोंगल का त्यौहार बड़े पैमाने पर मनाया जाता है। जब नवग्रहों के दर्शन की शुरुवात की जाती है तो उसमे कुम्बकोनाम का मंदिर भी शामिल किया जाता है।

2. थिन्गालुर कैलासंथर मंदिर

कैलासंथर मंदिर कुम्बकोनाम से केवल 18 किमी की दुरी पर स्थित है और यह मंदिर थिन्गालुर में स्थित है। यह मंदिर चन्द्र देव को समर्पित है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है की यहापर भगवान शिव का भी शिवलिंग है और इस शिवलिंग को यहापर कैलासंथर कहते है और साथ में उनकी पत्नी देवी पेरियानाकिम्मान भी है और दोनों की भी इस मंदिर में पूजा की जाती है।

कहा जाता है की चन्द्र देव को ब्रम्हदेव के शाप से मुक्ति पानी थी इसीलिए उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की और  भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। इसीलिए जिन्हें चन्द्र दोष से मुक्ति पानी होती है वे सभी भक्त इस मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए आते है।

3. वैथीस्वरण कोइल – Vaitheeswaran Koil

वैथीस्वरण कोइल मंदिर मंगल ग्रह का मंदिर है और यह मंदिर भी तमिलनाडू में है। मंगल ग्रह को कुजा और सेव्वाई भी कहा जाता है। इस मंदिर को कुछ लोग पुल्लिरुक्कूवेलुर मंदिर भी कहते है। नवग्रहों के अन्य मंदिरों के तरह ही इस मंदिर की मुख्य देवता भगवान शिव है और उन्हें सभी वैद्यनाथस्वामी कहते है और माता पार्वती को थैयलनायकी कहा जाता है।

इस मंदिर में भगवान शिव को एक वैद्य के रूप में पूजा जाता है जो सभी बीमारियों का इलाज करते है। इस मंदिर में मंगल देव की कांस्य से बनी हुई मूर्ति है और सभी भक्त मंगल देव की पूजा करते है ताकी उन्हें सभी बीमारियों से छुटकारा मिल जाए। हर मंगलवार के दिन मंगल देव की मूर्ति को बाहर निकाला जाता और उनकी बड़ी यात्रा निकाली जाती और सभी उनकी पूजा करते है।

4. थिरुवेंकदु

स्वेथारंयेस्वर मंदिर थिरुवेंकदु में स्थित है और यह नवग्रहों में से चौथा मंदिर है। यह मंदिर बुद्धन देव यानि बुध देव का मंदिर है। इस मंदिर की भी मुख्य देवता भगवान शिव है जिन्हें स्वेथारंयेस्वर कहा जाता है और देवी पार्वती को ब्रम्ह विद्या नायकी अम्बल कहा जाता है।

यहापर बुध देव का भी एक अलग मंदिर है जिन्हें सम्पति और बुद्धि की देवता माना जाता है। अगोरा मूर्ति इस मन्दिर का मुख्य आकर्षण केंद्र है क्यों की यह भगवान शिव का एक अवतार है। रथ यात्रा इस मंदिर का सबसे खास और सबसे बड़ा उत्सव है।

5. अलंगुडी

अलंगुडी का मंदिर गुरु ग्रह यानि बृहस्पति मंदिर है और इस मंदिर को अपतसहयेस्वर मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को कुछ लोग गुरु स्थल या तिरु इरूम पुलई भी कहा जाता है। अन्य मंदिरों की तरह इस मंदिर की भी मुख्य देवता भगवान शिव ही है और यहाँपर उन्हें अरन्येश्वर के रूप में पूजा जाता है और साथ में उनकी पत्नी उमाई अम्मई की भी पूजा की जाती है।

इस जगह को सभी गुरु स्थल मानते है। यह जगह 275 पदल पत्र स्थलों में से एक है जहापर भगवान शिव के भक्त संत ‘काम्पंतर’ ने इस मंदिर की काफी प्रशंसा की थी। यह मंदिर कावेरी नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। भगवान बृहस्पति को बुद्धि, कला और शिक्षा में उत्कृष्टता के लिए पूजा जाता है।

6. कंजनूर

तमिलनाडु के कंजनूर में अग्निश्वर का मंदिर है और यह मंदिर शुक्र देव का मंदिर है जो शुक्र ग्रह के देवता है। प्रेम, विवाह, आनंद और सुन्दरता के लिए शुक्र देव की पूजा की जाती है और अच्छी पत्नी पाने के लिए सभी पुरुष शुक्र देव की पूजा करते है। इस मंदिर में अग्निश्वर के रूप में भगवान शिव की मुख्य रूप से पूजा की जाती है।

ऐसा कहा जाता है की इस जगह पर खुद अग्नि देव ने भगवान शिव की पूजा की थी। शुक्र देव के अलावा भी इस मंदिर में अन्य देवताओ की पूजा की जाती है। विजयनगर और चोल वंश के समय के बहुत ही सुन्दर शिलालेख यहापर देखने को मिलते है साथ ही शिवकामी और नटराज की पत्थर से बनी सुन्दर मुर्तिया भी यहापर देखने को मिलती है।

7. थिरुनाल्लर

दर्बरंयेस्वर मंदिर शनि देव का मंदिर है और यह मंदिर पुदुच्चेरी के करैकल जिले में स्थित है। यह एक भगवान शिव का अवतार है और इसी रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर की मूर्ति को दर्भ घास से बनाया गया है। शनिदेव की भी यहापर पूजा की जाती है और उन्हें इस मंदिर के द्वारपाल के रूप में भी देखा जाता है।

इस मंदिर की यह परंपरा है की यहापर भगवान शिव के दर्शन करने से पहले शनिदेव के दर्शन करने पड़ते है और उनकी पूजा की जाती है। कुछ मिथक के अनुसार ऐसा भी कहा जाता है की शनि दोष की वजह से एक बार नल राजा को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए नल राजा ने यहाँ के जलाशय में स्नान किया था तब जाकर उनके सारे दोष दूर हो गए। जिस जगह पर नल राजा ने स्नान किया था आज उसे ‘नल तीर्थम’ कहा जाता है यह भी मंदिर के परिसर में ही स्थित है।

8. थिरुनागेश्वरम

इस जगह पर भगवान राहु का मंदिर है और यह मंदिर भी तमिलनाडू में स्थित है। इस मंदिर का नाम नागनाथस्वामी मंदिर है। इस मंदिर के मुख्य देवता नागनाथस्वामी भी भगवान शिव का ही अवतार है और उनकी पत्नी गिरी गुजम्बिका की भी यहापर पूजा की जाती है। यहापर माता सरस्वती और माता लक्ष्मी के भी मंदिर है। राहु देव के साथ भी उनकी पत्नी नागकन्नी और नागवल्ली नजर आती है।

हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार आदि शेष नाग, करकोताकन नाग और दक्षण नाग यहापर भगवान शिव की पूजा किया करते थे। इसीलिए जिसको भी नाग दोष होता है वह इस दोष से मुक्ति पाने के लिए इस मंदिर में आता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है की यहापर राहु की इन्सान के चहरे में पूजा की जाती है।

लेकिन अन्य जितने भी जगह पर राहु के मंदिर होते है वहापर राहु की नाग के रूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर की एक और विशेषता है की जब भगवान राहु पर दूध का अभिषेक किया जाता है उस वक्त दूध का रंग अपने आप नीला जो जाता है।

9. किझपेरुम्पलम

इस जगह पर भी नागनाथस्वामी का मंदिर है लेकिन यह मंदिर केतु को समर्पित है इसीलिए इस मंदिर को केतु स्थलम भी कहा जाता है। लेकिन इस मंदिर की मुख्य देवता भी भगवान शिव का अवतार नागनाथस्वामी ही है। इस मंदिर में भगवान केतु का सर नाग का है और शरीर असुर का। इस मंदिर में राहु का बहुत ही दिव्य रूप दिखाई देता है। पंचमुखी नाग के रूप में केतु की मूर्ति बहुत ही सुन्दर दिखती है जो भगवान शिव की पूजा करने में व्यस्त दिखती है। एक बार दुधिया महासागर को मथने के लिए राहु और केतु ने नाग के रूप में भगवान शिव की मदत की थी।

इन सभी नौ ग्रहों के मंदिर अधिकतर तमिलनाडु में ही स्थित है। इन सभी ग्रहों के मंदिर तमिलनाडू के अलग अलग शहर में स्थित है। इन सब मंदिरों में एक बात अधिकतर देखने को मिलती है की हर मंदिर में भगवान शिव का मंदिर होता है। हर मंदिर में भगवान शिव का मुख्य मंदिर होता है यानि हर मंदिर की अहम देवता भगवान शिव होते है और उनके साथ में सम्बंधित ग्रह के देवता का मंदिर रहता है।

सभी मंदिरों से कुछ ना कुछ प्राचीन कहानी जुडी दिखाई देती है और सभी कहानिया अद्भुत लगती है। इन सब मंदिरों में भगवान शिव एक नए रूप और अवतार नजर आते है और उनके अवतार की कहानिया भी काफी रोचक लगती है। जिन्हें भी ग्रह दोष हो उन सब ने एक बार इन नौ ग्रहों के देवता के दर्शन जरुर करने चाहिए क्यों की ऐसा करने से उन्हे सभी ग्रह दोष से मुक्ति मिल जाती है।

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