राष्ट्रीय बालिका दिवस – Rashtriya Balika Diwas

Rashtriya Balika Diwas

”बेटी बिना नहीं सजता घरौंदा, बेटी ही है संस्कारों का परिंदा”

बालिकाओं की अधिकारों की रक्षा करने, महिलाओं को उनकी शक्ति का एहसास दिलाने, और उनके विकास के लिए हर साल बालिका दिवस मनाया जाता है। बालिका दिवस सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी मनाया जाता है। आपको बता दें कि हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस और 11 अक्टूबर को अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया जाता है।

Rashtriya Balika Diwas

राष्ट्रीय बालिका दिवस – Rashtriya Balika Diwas

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 19 दिसंबर, साल 2011 में एक प्रस्ताव पारित कर 11 अक्टूबर को अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी।

बालिका दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के बारे में व्याप्त बुराइयों को समाज से दूर करना, कन्या भ्रूण हत्या पर रोक लगाना, समाज में लड़कियों के लिए सम्मान की भावना पैदा करना, लड़कियों की शिक्षा पर जोर देना, बाल विवाह पर रोक लगाना, लड़कियों के विकास के अवसरों को बढ़ाना, लड़कियों को समान अधिकार दिलावाना या बालकाओं के सशक्तिकरण पर जोर देना ही नहीं बल्कि बालिकाओं द्धारा सामना की जाने वाली सभी चुनौतियों को उजागर कर उनकी जरूरतों को पहचानना और उनके मानवाधिकारों की पूर्ति में उनकी मद्द करना भी है।

इसमें किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं है कि लड़कियों का पिछले 2 दशक में काफी विकास हुआ है और हर क्षेत्र में लड़कियां, लड़कों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, लेकिन आज भी समाज में लड़कियों की स्थिति इतनी मजबूत नहीं हुई है, जितनी की होनी चाहिए।

लगातार बढ़ रही रेप की वारदातें और कन्या भ्रूण हत्या से अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आज भी लड़कियों खुद को अहसहज और असुरक्षित महसूस कर रही हैं।

हालांकि इसके लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसके लिए लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है। यही वजह है कि हर साल 24 जनवरी और 11 अक्टूबर को क्रमश: राष्ट्रीय बालिका दिवस और अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि देश में लड़कियों के विकास के लिए उन्हें नए मौके देने और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत की गई।

हर साल 24 जनवरी को मनाए जाने वाले इस राष्ट्रीय बालिका दिवस की शुरुआत साल 2009 हुई। 24 जनवरी के दिन इंदिरा गांधी को नारी शक्ति के रुप में पूरे देश में याद किया जाता है।

दरअसल, इसी दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थी, इसलिए इस दिन को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाए जाने का फैसला लिया गया। इस फैसले के बाद से पूरे देश में इसे एक उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा।

वहीं राष्टीय बालिका दिवस के मौके पर आयोजित जागरूकता प्रोग्राम के माध्यम से समाज में बालिकाओं के प्रति फैली तमाम बुराईयों को दूर किया जा रहा है और उन्हें बालिकाओं के सशक्तिकरण पर जोर दिया जा रहा है।

भारत में ही नहीं दुनिया के कई और देशों में बालिकाओं की स्थिति सही नहीं है इसलिए लड़कियों के विकास और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए 11 अक्टूबर को पूरी दुनिया में अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस (International Day of the Girl Child) भी मनाया जाता है।

आपको बता दें कि 19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र ने फैसला लिया था कि हर साल 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाएगा।

इस दिन की शुरुआत बालिकाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उनके सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने के उद्देश्य के साथ की गई थी। साल 2012 में अंतराष्ट्रीय बालिका दिवस को पहली बार मनाया गया था।

‘अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस’ को बढ़ावा देने के लिए इस दिन अलग-अलग देशों में कई तरह के क्रार्यक्रमों का भी आयोजन भी किया जाता है, जिसके चलते लड़कियों की शिक्षा, पोषण, उनके कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल के प्रति उन्हें और समाज के लोगों को जागरूक किया जाता है।

यही वजह है कि समाज में लड़कियों के प्रति लोगों की सोच बदल रही है और आज लड़कियां राजनीति, शिक्षा, खेल, पर्यटन समेत हर क्षेत्र में आगे हैं। दुनिया का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जिसमें लड़कियां सामान रुप से भागीदारी नहीं ले रही हों, हर क्षेत्र में लड़कियों का बोलबाला है।

लेकिन इन सबके बाबजूद भी लड़कियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

आपको बता दें कि दुनिया की करीब 1.1 अरब लड़कियों में करीब 75 करोड़ ऐसी लड़कियां हैं, जिनकी शादी 18 साल से कम उम्र में ही कर दी गई। वहीं पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बाल विवाह बांग्लादेश में होते हैं और इसके बाद दूसरे नंबर पर भारत का नाम आता है।

वहीं भारत में बाल विवाह के मामले में पश्चिम बंगाल पहला, बिहार दूसरा जबकि झारखंड तीसरा राज्य है।

इसके अलावा अगर भारत में लड़कियों की शिक्षा की बात करें तो शहरी इलाकों में हर 100 में से सिर्फ 14 बेटियां ही ऐसी हैं, जो कि 12वीं कक्षा तक पढ़ाई कर पाती हैं, जबकि भारत के गांवों में लड़कियों की शिक्षा की स्थिति और भी ज्यादा बदतर है। यहां 100 में से महज 1 ही लड़की 12वीं क्लास तक पढ़ाई कर पाती है।

हालांकि भारत में मैरीकॉम, गीता फोगाट, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, पीटी उषा, साक्षी मलिक, दीपा कर्माकर, चंदा कोचर, सुमित्रा महाजन, लता मंगेशकर समेत तमाम ऐसी बेटियां भी हैं जिन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया में मनवाया और देश को गौरान्वित किया है।

इसके अलावा बालिकाओं के कल्याण के लिए भारत सरकार की तरफ से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, सुकन्या समृद्धि योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना समेत कई योजनाएं भी चलाई जा रही है।

जिसका मुख्य मकसद लड़कियों का बेहतर और सशक्त बनाना है। ताकि वे आगे चलकर बेहतर समाज के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें।

“बेटी कुदरत का उपहार
नहीं करो उसका तिरस्कार
जो बेटी को दे पहचान
माता-पिता वही महान।।”

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