संत रविदास के दोहे अर्थ समेत – Ravidas ke Dohe with Meaning
संत रविदास का दोहा नंबर 1- Ravidas ke Dohe 1
महान संत रविदास जी ने इस दोहे में इन्सान के कर्मों के महत्व के बारे में व्याख्या की है। जो लोग सोचते हैं कि कोई इंसान जन्म लेने से ही बुरा और अच्छा बन जाता है, तो यह सोचना गलत है। क्योंकि सभी इंसान एक जैसे पैदा होते हैं लेकिन इंसान के कर्म ही उसे अच्छा या बुरा बनाती है।
दोहा:
रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नरकूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते है की सिर्फ जन्म लेने से कोई नीच नहीं बन जाता है लेकिन इन्सान के कर्म ही उसे नीच बनाते है।
क्या सीख मिलती है:
महान संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए क्योंकि अच्छे कर्म ही इंसान को स्वर्ग का रास्ता दिखाते हैं।
संत रविदास का दोहा नंबर 2- Ravidas ke Dohe 2
इस दोहे में संत रविदास जी ने इंसान के पवित्र ह्रदय के बारे में व्याख्या की है कि जब इंसान पूरी तरह से अपनी जिंदगी में खुश रहता है तब उसे किसी भी तरह की चिंता नहीं सताती और वह इंसान थोड़े कम में भी गुजारा कर लेता है –
दोहा:
मन चंगा तो कठौती में गंगा
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
महान संत रविदास जी कहते हैं कि अगर आपका मन और हृदय पवित्र है साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि हमें अपने मन में किसी के प्रति ईर्ष्या का भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि साफ दिल वाले इंसान हमेशा खुश रहते हैं और अपनी जिंदगी में ऐसे काम करते हैं जो कि दूसरे को प्रेरणा दे सकें।
संत रविदास का दोहा नंबर 3- Ravidas ke Dohe 3
इस दोहे में संत रविदास जी ने यह व्याख्या की है कि जातिगत भेदभाव के अंतर से इंसान बंट चुके हैं जिन्हें तब तक एक नहीं किया जा सकता जब तक की जाति को जड़ से खत्म नहीं किया जाए, वहीं आज के समाज में कई लोग ऐसे हैं जो कि लोगों में जातिगत भेदभाव की भावना को बढ़ा रहे हैं, ऐसे लोगों के लिए संत रविदास जी का यह दोहा काफी ज्ञानवर्धक है –
दोहा:
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रविदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात
दोहा का हिन्दी में अर्थ:
महान संत रविदास जी कहते है की जिस तरह केले के पेड़ के तने को छीला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और आखिरी में कुछ भी हासिल नहीं होता है लेकिन पूरा पेड़ नष्ट हो जाता है ठीक उसी तरह इंसानों को भी जातियों में बांट दिया गया है।
वहीं इन जातियों के बंटने से इन्सान तो अलग-अलग बंट जाता है और फिर वे भी केले के पत्तों की तरह आखिरी में खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है। इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तबतक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है या फिर एक नही हो सकता है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जातिगत भेदभाव नहीं करना चाहिए और सभी को मिलजुल कर रहना चाहिए।
संत रविदास का दोहा नंबर 4- Ravidas ke Dohe 4
आज के समाज में कई लोग ऐसे भी हैं जो कि पूरी जिंदगी मोह-माया में पड़े रहते हैं और सिर्फ और सिर्फ पैसे कमाने के पीछे भागते रहते हैं न तो उन्हें रिश्तों का ध्यान होता है और न ही ऐसे लोग भगवान का ध्यान करते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए संत रविदास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से बड़ी बात कही है जो कि इस प्रकार है –
दोहा:
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते हैं कि हीरे से बहुमूल्य हरी यानि ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते है उन्हें अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है अर्थात प्रभु की भक्ति को छोड़कर इधर उधर भटकना व्यर्थ है।
क्या सीख मिलती है:
हमें अपनी जिंदगी में ऐश और आराम के लिए पैसे कमाने के पीछे नहीं भागना चाहिए बल्कि ईश्वर की भक्ति में ध्यान लगाना चाहिए तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ेगा।
संत रविदास का दोहा नंबर 5- Ravidas ke Dohe 5
रविदास जी ने इस दोहे में उन लोगों के लिए सीख दी है जो लोग बिना कुछ कर्म किए ही फल की चिंता करने में लगे रहते हैं और अंत में कुछ नहीं हासिल होने पर भगवान को दोष देते हैं।
दोहा:
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते है की हमें हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म के बदले मिलने वाले फल की आशा नही छोड़नी चाहिए क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए और कुछ हासिल करने के लिए प्रयत्न करते रहना चाहिए क्योंकि जो लोग कोशिश करते हैं उन्हें अपनी जिंदगी में तरक्की जरूर मिलती है।
संत रविदास का दोहा नंबर 6- Ravidas ke Dohe 6
इस दोहे में संत रविदास जी ने उन लोगों को सीख दी है जो लोग अपने विशालकाय शरीर या फिर ज्यादा पैसे होने पर घमंड करते हैं और अपने गुरूर में इतने डूबे रहते हैं और न ही किसी दूसरे की कदर करते हैं और ईश्वर की भक्ति की तरफ तो उनका बिल्कुल भी ध्यान नहीं होता हैं –
दोहा:
कह रविदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी के इस दोहे का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है अगर आपमें थोड़ा सा भी घमंड नही है तो निश्चित ही आपका जीवन सफल रहता है ठीक वैसे ही, जैसे कि एक विशालकाय हाथी शक्कर के दानो को बिन नही सकता है लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चीटी भी शक्कर के इन दानो को आसानी से बिन लेती है इस प्रकार इंसानों को भी बडप्पन का भाव त्यागकर ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि घमंड इंसान को सफलता से असफलता की तरफ खींचता है और ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए तभी हमें अपने जीवन के उद्देश्यों को हासिल करने में सफलता हासिल होगी।
त रविदास का दोहा नंबर 7- Ravidas ke Dohe 7
संत रविदास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से यह बताने की कोशिश की है ईश्वर एक हैं, नाम अलग होने से ईश्वर की भक्ति का महत्व कम नहीं हो जाता है।
दोहा:
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते है की राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें भगवान के अलग-अलग नामों पर नहीं पड़ना चाहिए बल्कि सच्चे मन से प्रभु की प्रार्थना करनी चाहिए क्योंकि ईश्वर एक ही है वहीं सभी ग्रंथों, कुरान, वेद और पुराणों में भी ईश्वर की भक्ति के लिए एक ही सदाचार का पाठ पढ़ाया गया है।
संत रविदास का दोहा नंबर 8- Ravidas ke Dohe 8
इस दोहे के माध्यम से महान संत रविदास जी ने खुद के बारे में यह बताने की कोशिश की है कि ईश्वर की सच्चे मन से प्रार्थना करने से उनके जीवन में काफी बदलाव आया और उनकी दोबारा उत्पत्ति मनुष्य के रूप में हुई है।
दोहा:
जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रविदास
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते है की जिस रविदास को देखने से लोगो को घृणा आती थी जिनका निवास नर्क कुंद के समान था ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर से उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो गयी है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि ईश्वर की भक्ति से मनुष्य अज्ञानता से ज्ञान की तरफ अग्रसर होता है और अपने जीवन में तरक्की हासिल करता है।
संत रविदास का दोहा नंबर 9- Ravidas ke Dohe 9
इस दोहे के माध्यम से संत रविदास ने कहा है कि जो सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करता है उसका उद्धार होना स्वभाविक है –
दोहा:
रविदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम
दोहे का हिन्दी में अर्थ:
रविदास जी कहते हैं कि जिसके हृदय में रात-दिन राम समाए रहते हैं ऐसा भक्त होना राम के समान है क्योंकि फिर उसके ऊपर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उस पर हावी होती है।
क्या सीख मिलती है:
संत रविदास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपना ध्यान भगवान की भक्ति में लगाना चाहिए। ऐसा करने से मन शांत रहता है और इंसान हर फैसले बड़ी समझदारी से लेता है।
रविदास के पद अर्थ समेत – Ravidas ke Pad with Meaning
संत रविदास जी ने सिर्फ अपने दोहे के माध्यम से लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलने की ही सीख दी है बल्कि उन्होंने अपने पदों के माध्यम से लोगों में ईश्वर की भक्ति का महत्व भी समझाया और यह सीख दी कि ईश्वर की भक्ति से इंसान अपनी जिंदगी संवार सकता है और कुछ सकारात्मक तरीके से बदलाव कर सकता है –
आइए अब हम आपको संत रविदास जी के पदों के बारे में बताएंगे जो कि इस तरह हैं –
रविदास का पद नंबर 10 – Ravidas ke Pad 10
निम्नलिखित दोहे में संत रविदास जी ने भक्ति का वर्णन किया है और यह बताने की कोशिश की है कि अगर कोई भक्त सच्चे मन से ईश्वर की प्रार्थना करे तो इंसान का पूरा जीवन बदल सकता है। इस दोहे में उन्होंने खुद को भी प्रभु का दास बताया है –
पद:
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी ।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ॥
पद का हिन्दी में अर्थ:
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि रविदास जी ने अपने भक्ति के भाव का वर्णन किया है। उनके मुताबिक जिस तरह प्रकृति में बहुत सारी चीजें एक दूसरे से जुड़ी रहती हैं। ठीक उसी तरह एक भक्त और भगवान् भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।
आपको बता दें कि संत रविदास जी ने इस पद की पहली पंक्ति में प्रभु राम के नाम का गुण गान किया है। वे बोल रहे हैं कि अगर एक बार राम नाम रटने की लत लग जाए तो फिर वो कभी छूट नहीं सकती है।
इस पद में संत रविदास जी एक सच्चे भक्त की तुलना चंदन की लकड़ी से करते हुए कहा है कि एक सच्चा भक्त चन्दन की लकड़ी और पानी की तरह होते हैं और जब चन्दन की लकड़ी को पानी में डालकर छोड़ दिया जाता है तो उसकी सुगंध पूरे पानी में फ़ैल जाती है और पूरा पानी सुगंधित हो जाता है। ठीक उसी तरह भगवान भी अपनी सुगंध अपने भक्त के मन में छोड़ जाते हैं। जिसे सूंघकर एक भक्त सदा अपने प्रभु की भक्ति में लीन रहता है।
इस पद में आगे रविदास जी कहते हैं कि जब बारिश होने वाली होती है तो पूरे आसमान में चारों तरफ बादल घिर जाते हैं, ऐसे सुहाने मौसम में जंगल में मोर भी अपने पंख फैलाकर नाचे बिना नहीं रह सकता है, ठीक उसी तरह एक सच्चा भक्त भगवान का नाम लिए बिना नहीं रह सकता।
इस पद की तीसरी पंक्ति में संत रविदास जी कहते हैं कि जैसे एक दिए में बाती जलती रहती है, ठीक उसी तरह एक भक्त भी प्रभु की भक्ति में जलकर हमेशा प्रज्वलित होता रहता है। वहीं आगे इस पद की चौथी पंक्ति में कवि ने ईश्वर को मोती की तरह और भक्त को एक धागे की तरह बताया है, एक धागा जिसमें मोतियों को पिरोया जाता है।
इस तरह भक्त और भगवान दोनों ही एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं और इसलिए कवि ने एक भक्त से भगवान के मिलन को सोने पर सुहागा बताया है। वहीं इस पद की आखिरी पंक्ति में संत रविदास जी ने अपनी भक्ति की व्याख्या करते हुए खुद को एक दास और प्रभु का स्वामी बताया है।
रविदास का पद नंबर 11 – Ravidas ke Pad 11
महान संत रविदास जी ने अपने इस पद में भगवान की महिमा का वर्णन किया है, उन्होंने कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से प्रभु की आराधना करता है, उसे तरक्की जरूर हासिल होती है क्योंकि भगवान अपने हर भक्त पर सामान भाव से कृपा करते हैं, बिना किसी भेदभाव के प्रभु कृपा करते हैं और अपने भक्तों का ख्याल रखते हैं।
कवि ने इस पद में खुद को इस पद में नीच और अभागा बताया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि भगवान ने उन जैसे अभागे पर भी अपनी कृपा बरसाई है जिससे वह खुशी से फूले नहीं समां रहे हैं –
पद:
ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै।
गरीब निवाजु गुसईआ मेरा माथै छत्रु धरै।।
जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै॥
नामदेव कबीरु तिलोचनु सधना सैनु तरै।
कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै॥
पद का हिन्दी में अर्थ:
संत रविदास जी ने इस पद में प्रभु की कृपा एवं महिमा का वर्णन करते हुए कहा है कि इस पूरी दुनिया में प्रभु से बड़ा दयालु और कृपालु कोई और नहीं है और वह गरीबों पर अपनी कृपा बरसाने वाले और दिन – दुखियों की सामान भाव से मद्द करने वाले हैं।
इसके अलावा संत रविदास जी ने इस पद में यह भी कहा है कि भगवान सभी को एक सामान भाव से देखते हैं और छूत-अछूत में कोई भेदभाव नहीं रखते हैं और इसी वजह से कवि रविदास जी इस पद में यह कह रह हैं कि उनके अछूत होने के बाद भी उन पर प्रभु ने असीम कृपा बरसाई है। वहीं प्रभु के इस कृपा की वजह से कवि को अपने माथे पर राजाओं जैसा छत्र महसूस हो रहा है।
इस पद में कवि ने खुद को नीच एवं अभागा बताते हुए कहा है कि उनके नीच होने के बाबजूद भी प्रभु ने उन पर सामान भाव से कृपा बरसाई है जिससे कवि बेहद प्रसन्न हैं। संत रविदास अपने प्रभु की महिमा का वर्णन करते हुए कह रहे हैं कि संत अपने भक्तों में भेद भाव नहीं करते हैं।
वे हमेशा अपने भक्तों को एक सामान दृष्टि से देखते हैं और सभी पर बिना किसी डर के और भेदभाव के एक समान कृपा बरसाते हैं। इसके साथ ही रविदास जी कहते हैं कि प्रभु के इसी गुण के वजह से नामदेव, कबीर जैसे जुलाहे साधना जैसे कसाई, सैन जैसे नाइ एवं त्रिलोचन जैसे सामान्य व्यक्तियों को भी इतनी ख्याति प्राप्त हुई है।
और प्रभु की कृपा से उन्होंने इस संसार रूपी सागर को पार कर लिया है। इसके साथ ही इस पद की आखिरी पंक्ति में कवि ने संतों से कहा कि है प्रभु की महिमा अपरम्पार है, वह कुछ भी कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
संत रविदास ने अपने दोहे के माध्यम से लोगों में एक सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार किया और समाज से फैली बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न किया है। इसके साथ ही लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने की सीख दी है जो कि वाकई सराहनीय है। वहीं महान संत रविदास जी के दोहों के अनुसरण से लोगों के जीवन में काफी हद तक बदलाव आ सकता है और इससे ईश्वर की भक्ति के महत्व का पता चलता है।
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संत गुरु रबिदास जी बंदगी