गुरु पौर्णिमा क्यू मनायी जाती हैं | Story of Guru Purnima

Story of Guru Purnima

गुरु शब्द का अर्थ काफी बड़ा है। जैसे ही कोई ‘गुरु’ शब्द पुकारता है तो ज्यादातर लोगो को लगता है इसका सम्बन्ध स्कूल के शिक्षक से है। लेकिन असल में ऐसा कुछ भी नहीं। गहराई में जाकर देखे तो हमें पता चलता है की गुरु और शिक्षक अलग होते है। शिक्षक केवल गुरु शब्द का हिस्सा माना जाता है लेकिन इसका मतलब यह बिलकुल नहीं बनता की केवल शिक्षक ही गुरु होते है।

किसी भी व्यक्ति के माता पिता उसके पहले गुरु होते है और जब वही इन्सान स्कूल में पढ़ता है तो वहा उसके शिक्षक उसके गुरु होते है। लेकिन हमारे भारत देश में गुरु पौर्णिमा को कई सारे बातो की वजह से मनाया जाता है।

गुरुपौर्णिमा को कुछ लोग इस त्यौहार को व्यास पौर्णिमा नाम से भी जानते है। हमारे भारत जैसे देश में शिक्षक, गुरु को भगवान के समान माना गया है। आस्था और श्रद्धा के साथ मनाए जाने वाले इस पावन पर्व को मनाने के पीछे भी कई महान कथाएं जुड़ी हुई हैं।

गुरु पौर्णिमा क्यू मनायी जाती हैं – Story of Guru Purnima

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वेदव्यास जी ने एक भील को माना अपना गुरु – Story of Ved Vyas

शास्त्रों में एक घटना के मुताबिक एक बार जब महर्षि वेदव्यास जी ने भील जाति के एक व्यक्ति को पेड़ से नारियल तोड़ते हुए देखा तब व्यास जी के मन में नारियल तोड़ने की कला को सीखने की उत्सुकता पैदा हुई, जिसके चलते वे उस भील जाति के व्यक्ति के पीछे भागने लगे, लेकिन वह व्यक्ति, व्यास जी से डर के चलते दूर भागता रहा।

यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा, वहीं व्यास जी के अंदर भी इस कला को सीखने की इतनी वेदना थी कि वे भील जाति के युवक का पीछा करते-करते एक दिन उसके घर पहुंच गए।

जिसके बाद वो युवक खुद तो नहीं मिला, लेकिन घर पर उसका बेटा मिला जिसने संस्कृत के प्रकंड विद्धान व्यास जी की पहले पूरी बात सुनी और फिर वह नारियल तोड़ने की विद्या सिखाने के लिए उन्हें तैयार हो गया।

इसके बाद व्यास जी ने पूरी लगन के साथ भील जाति के युवक के पुत्र से नारियल तोड़ने की विद्या का मंत्र लिया। वहीं उस युवक ने अपने बेटे को ये सब करते देख अपने पुत्र से कहा कि वो महाज्ञानी और परम ब्राह्मण वेद व्यास जी को इस कला को जानबूझकर नहीं सिखाना चाहते थे।

क्योंकि वो  इस बात को अच्छी तरह से जानते थे कि जिस व्यक्ति से किसी भी तरह का ज्ञान प्राप्त किया जाता है, या फिर मंत्र लिया जाता है तो, वो व्यक्ति उसके लिए गुरु के सामान हो जाता है।

जिसके चलते भील जाति के युवक के मन में यह शंका थी कि वे लोग छोटी जाति के हैं, और व्यास जी ब्राह्मण जाति के हैं तो ऐसे में व्यास जी उनका गुरु के समान सम्मान कैसे करेंगे?

इसके अलावा उस भील जाति के पुरुष ने यह भी कहा कि अगर मंत्र देने वाले व्यक्ति को पूज्य नहीं समझा जाए तो वो मंत्र फल देना वाला साबित नहीं होता है।

फिर उस युवक ने अपने पुत्र को व्यास जी की परीक्षा लेने के लिए उनके दरबार में भेजा कि व्यास जी उन्हें अपने गुरु की तरह पूज्य मानकर उनका आदर-सत्कार करते हैं या फिर नहीं।

वहीं अपने पिता की बात सुनने के बाद उसका पुत्र, एक गुरु के रुप में व्यास जी के दरबार में पहुंच गया, जहां व्यास जी अपने गुरु को आते देख दौड़े-दौड़े आए और उनका पूजन कर उनके आदर सत्कार में लग गए और उन्हें गुरु की तरह मान-सम्मान दिया, जिसे देख उस युवका का पुत्र बेहद खुश हुआ और इसके बाद उसने अपने पिता को व्यास जी के बारे में बताया।

जिसे सुनकर उसके पिता के मन की सारी शंकाएं खत्म हो गईं कि जो व्यक्ति एक छोटी जाति के व्यक्ति को भी गुरु की तरह उनका आदर-सत्कार करता है और गुरु के समान महत्व देता है।

वह परम पूजनीय है और तभी से गुरु-शिष्य परंपरा में श्री मद भगवद गीता की रचना करने वाले इस महाज्ञानी और प्रकंड पंडित महर्षि वेद व्यास जी को सबसे अग्रणी और प्रथम गुरु माना जाने लगा एवं गुरुओं के आदर सत्कार और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा के पर्व को पूरे श्रद्धाभाव के साथ मनाया जाने लगा।

आषाढ़ महीने में पौर्णिमा के दिन गुरुपौर्णिमा मनाई जाती है। गुरु वह होता है जो हमारे जीवन से अंधकार रूपी अज्ञान को निकाल देता है। सभी लोग अपने जीवन में गुरु को बहुत सम्मान देते है

गुरु पौर्णिमा के दिन स्कूल और कॉलेज में बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस दिन सभी छात्र अपने शिक्षको के प्रति कृतज्ञता जताते है। अधिकतर जगह पर इस अवसर पर भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है।

आगे एक श्लोक दिया गया है उसमे गुरु का महत्व बताया गया है।

“गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा, गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः”

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