इतिहास का काला अध्याय- जलियांवाला बाग हत्याकांड

Jallianwala Bagh Hatyakand

इतिहास में बहुत सी ऐसी घटनाएं हुई है जिसने हमारा आज बनाया है। कहते है कामयाबी कभी एक दिन की मेहनत होती है उसकी नींव रखने में ही कई साल लग जाते है। प्राचीन समय में भारत के एक समृद्ध देश होने के कारण कई बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया किसने इसे लूटने की कोशिश की तो किसी ने यहां पर अपनी सत्ता जमाने की कोशिश की। भारत पर 200 साल ब्रिटिश ने भी राज किया।

इस दौरान अंग्रेजों ने भारत को न केवल गुलाम बनाया बल्कि इसके कई विभाजन भी किए। अंग्रेजो के अत्याचारों से मुक्ति पाने और एक स्वंतत्रता देश में रहने के लिए लाखों देशवासियों संघर्ष किया। आजादी को लेकर कई आंदोलन हुए बहुत सी घटनाएं घटी। लेकिन इन सब जो घटना सबसे ज्यादा दुखद थी वो थी Jallianwala Bagh Massacre – जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना।

जिसने 400 भारतीयों की मौत हो गई थी वही 2 हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। लेकिन ये नरसंहार क्यों हुआ और इसके परिणाम स्वरुप देश में ओर क्या क्या हुआ ये हम अपने आज के लेख में जानते हैं।

इतिहास का काला अध्याय- जलियांवाला बाग हत्याकांड – Jallianwala Bagh Hatyakand in Hindi

Jallianwala Bagh Massacre
Jallianwala Bagh Massacre

अमृतसर के विश्व प्रसिद्ध गोल्डन टेंपल के पास स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, साल 1919 के दिन एक भयानक नरसंहार हुआ था, इस भयावह नरसंहार ने भारतीय युवाओं और क्रांतिकारियों के अंदर न सिर्फ अंग्रेजों के खिलाफ और अधिक नफरत पैदा कर दी थी, बल्कि उनके अंदर आजादी की ज्वाला को और अधिक भड़का दिया था।

जलियावाला बांग हत्याकांड में हजारों बेकसूरों की मौत का मंजर स्तब्ध करने वाला था, वहीं इस नरसंहार ने गुलाम भारत को आजादी दिलवाने के लिए चलाए गए स्वाधीनता आंदोलन का रुख ही बदलकर रख दिया था।

इस जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद ही भगत सिंह जैसे महान युवा क्रांतिकारी ने खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता आंदोलन में झोंक दिया था और अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक पर दम कर दिया था। तो आइए जानते हैं जलियांवाला बाग नरसंहार के होने की प्रमुख वजह एवं इतिहास के बारे में-

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में एक नजर में – Jallianwala Bagh Massacre History

कहां घटित हुआ (Where Did Jallianwala Bagh Massacre Take Place): पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में।
क्यों हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड: रॉलेट एक्ट (काले कानून) के विरोध में।
कब हुआ जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Hatyakand Kab Hua Tha): 13 अप्रैल 1919।
कितने लोगों की मौत हुई: करीब 379 से 1100 लोग।
किसने चलवाईं गोलियां: जनरल डायर

लियांवाला बाग हत्याकांड – Jallianwala Bagh Massacre

पंजाब के अमृसर में गोल्डन टेंपल के पास स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 के दिन रॉलेट एक्ट के विरोध मे एक शांतिपूर्ण सभा बुलाई गई थी।

उसी दिन पंजाबियों का मुख्य पर्व बैसाखी भी थी, इसलिए इस सांस्कृतिक उत्सव को बनाने के लिए हजारों लोगों की भीड़ इस बाग में इकट्ठी हुई थी।

तभी उस दौरान ब्रिटिश सेना का क्रूर अधिकारी रेजिनाल्ड डायर अपने कई सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया एवं बिना किसी चेतवानी दिए बाग को चारों तरफ से घेर लिया एवं अपने सैनिकों से बाग में मौजूद मासूम और बेकसूर लोगों पर गोली चलाने के आदेश दे दिए।

करीब 10 से 15 मिनट तक बिना रुके ब्रिटिश सैनिकों ने करीब 1650 – 1700 राउंड फायरिंग की। वहीं इस निर्मम हत्याकांड में कई बेकसूर लोगों की जान चली गई थी।

वहीं जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान लोगों ने वहां से अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागने की कोशिश भी की थी, लेकिन इस घटना के दौरान जनरल डायर और उसके फौजियों ने बाग को चारों तरफ से घेर लिया था।

जिसके चलते इस बाग में मौजूद लोग बाहर निकलने में नाकामयाब रहे थे और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी, इसके साथ ही कुछ लोग अपनी जान बचाने के लिए इस बाग में बने कुएं में भी कूद गए थे, इसलिए इसे अब शहीदी कुआं के नाम से भी जाना जाता है।

जलियांवाला हत्याकांड में मौत का मंजर – Jallianwala Bagh Incident

अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए दर्दनाक हत्याकांड में कई मासूम बच्चे और बेकसूर लोगों की जान चली गई तो कई वीर जवान शहीद हो गए।

वहीं जलियांवाला बाग हत्याकांड में हुई मौतों की संख्या पर अलग-अलग आंकड़े मौजूद हैं। अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ऑफिस में 484 शहीदों की लिस्ट दर्शाई गई है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है।

जबकि ब्रिटिश सरकार के मुताबिक 379 लोगों ने इतिहास की इस सबसे विभीत्स घटना में अपनी जान गवांई थी, जिसमें करीब 200 लोग घायल होने की बात कही थी।

हालांकि, कुछ भारतीयों द्धारा करवाई गई जांच के मुताबिक जलियांवाला बाग नरसंहार में मरने वाले लोगों की संख्या 1 हजार से अधिक है, जबकि घायलों की संख्या 2 हजार से भी ज्यादा है।

जलयिांवाला बाग नरसंहार होने के प्रमुख कारण – Causes Of Jallianwala Bagh Massacre

जलियां वाला हत्याकांड का मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार द्धारा रॉलेट एक्ट को लागू करना था, इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य देश में आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों पर रोक लगाना एवं भारतीय क्रांतिकारियों पर काबू पाना था।

जिस वजह से उस दौरान प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी। वहीं इस काले कानून के तहत ब्रिटिश अधिकारी को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वे किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए उसे जेल में बंद कर सकते थे।

साथ ही इस कानून को लागू हो जाने के बाद लोगों को यह भी जानने तक का अधिकार नहीं था कि उनके खिलाफ मुकदमा क्यों और किसने चलाया है।

जिसके चलते इस कानून के विरोध में पूरे देश में जूलुस और विरोध प्रदर्शन हुए थे।

इस कानून के विरोध का नेतृत्व राष्ट्रीय नेता डॉ. सैफुद्धीन किचलू एवं सत्यपाल ने भी की थी। वहीं रॉलेक्ट एक्ट के चलते संपूर्ण देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे और ब्रिटिश शासकों के खिलाफ जुलूस निकाले जा रहे थे।

वहीं इसके बाद सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी भी की गई थी। जिसके चलते 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियावालां बाग में इन दोनों राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में भीड़ इकट्ठी हो गई थी।

जनरल डायर रॉलेट एक्‍ट का बहुत बड़ा समर्थक था और इसलिए जब उसे जलियांवाला बाग में इस एक्ट के विरोध में इकट्ठी हुई भीड़ का पता चला तो वह बौखला गया और अपने सैनिकों के साथ जाकर वहां अंधाधुंध फायरिंग करने के आदेश दिए। जिसके चलते यह भयानक नरसंहार हुआ।

रॉलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी जी ने भी देश का आह्वान किया था।

आपको बता दें कि साल 1919 में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाया जा रहा था, जिसमें भारतीयों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और इस आंदोलन के तहत 6 अप्रैल, 1919 में आंदोलन के तहत एक हड़ताल की शुरुआत की गई थी और रॉलेक्ट एक्ट का विरोध किया गया, जिसके बाद धीरे-धीरे शांतिपूर्ण ढंग से चलाए जा रहे इस अहिंसक आंदोलन ने हिंसक रुप ले लिया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम – Impact Of Jallianwala Bagh Massacre

जनरल डायर ने यह सोचकर जलियावाला बांग हत्याकांड को अंजाम दिया था, कि इस निर्मम नरसंहार के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके परिणाम विपरीत हुए, इस हत्याकांड के बाद भारतीयों के अंदर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ और अधिक नफरत पैदा हो गईं एवं अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने के लिए पूरा देश आंदोलित हो उठा।

वहीं इस हत्याकांड में न सिर्फ भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों को जन्म दिया बल्कि देश के स्वाधीनता आंदोलन को नई दिशा मिली।

जलियांवाला बाग हत्याकांड से भारतीय राजनीति को एकजुट होने में मदत मिली।

इस निर्मम नरसंहार के बाद भारतीयों के अंदर अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने की ज्वाला और अधिक भड़क गई थी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ही देश को आजाद करवाने की लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारत के सबसे युवा क्रांतिकारी भगत सिंह ने अपने स्कूल की पढ़ाई छोड़कर खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता आंदोलन में झोंक दिया था।

वहीं इस हत्याकांड का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

इस हत्याकांड ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नया मोड़ दिया। इस निर्मम एवं विभीत्स घटना के बाद ही भारतीयों के सामने ब्रिटिश शासकों का क्रूर एवं दमनकारी चेहरा सामने आया। और अंग्रेजों के ”नैतिक दावों” का अंत हो गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड की वजह से ही पूरा भारत देश अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलित हो उठा, जिसका चलते स्वतंत्रता आंदोलन मे कई लोगों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और फिर बाद में अंग्रेजों की गुलामी से आजादी प्राप्त की।

इस हत्याकांड के बाद महात्मा गाँधी के नेतृत्व में पूरे देश में असहयोग आंदोलन चलाया गया।

जलियांवाला बाग में स्मृति स्मारक की स्थापना – Jallianwala Bagh Museum

पंजाब के अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए निर्मम हत्याकांड में शहीद हुए लोगों की स्मृति में यहां स्मारक बनाया गया।

इस स्मारक का नाम ”अग्नि की लौ” रखा गया। साल 1920 में एक ट्रस्ट की स्थापना की गई थी और इस जगह को खरीद लिया गया था।

इससे पहले जलियांवाला बाग पर एक समय पर राजा जसवंत सिंह के वकील का अधिकार था, जबकि 1919 में इस स्थल पर करीब 30 लोगों का अधिकार था।

वहीं इस जगह को साल 1923 में इन लोगों से करीब 5, 65, हजार रुपए में खरीद लिया गया था।

यहां पर स्मारक का निर्माण भारत की आजादी के बाद किया गया था। इसके स्मारक का उद्घाटन आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने साल 1961 में किया था।

आपको बता दें कि इस शहीद स्मृति स्मारक की डिजाइन अमेरिका के आर्किटेक्ट बेंजामिन पोल्क ने तैयार की थी।  इस स्मारक को बनाने में करीब 9 लाख रुपए का खर्चा आया था।

स्मारक के चारों खंभों पर उर्दू, पंजाबी, अंग्रेजी, एवं हिन्दी भाषा में जलियावाला हत्याकांड की तिथि (Jallianwala Bagh Hatyakand Date) ”13 अप्रैल, 1919 शहीदों की याद में” लिखा हुआ है। इसके साथ ही अमृतसर के इस ऐतिहासिक जलियांवाला बाग के मुख्य प्रवेश द्धार के जनरल डॉयर के ब्रिटिश सैनिकों की अवस्था को भी चिन्हित किया गया है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें – Jallianwala Bagh Massacre Facts

  • जलियांवाला बाग वर्तमान में एक पर्यटक स्थल बन गया है। वहीं आज यहां हजारों की संख्या में लोग इस स्थान पर घूमने आते हैं।
  • इस स्थान पर आज भी गोलियां के निशान है, जो कि 13 अप्रैल, 1919 में हुए इतिहास के इस सबसे निर्मम और दर्दनाक नरसंहार की याद दिलाते हैं।
  • इसके अलावा इस स्थल पर वह कुंआ भी स्थित हैं जिसमें इस हत्याकांड के दौरान ब्रिटिश सैनिकों की गोलियों से बचने के लिए तमाम महिलाओं और बच्चें कूद गए थे, यह ”शहीदी कुआं”(Martyrs Well) के नाम से प्रसिद्ध है।
  • जलियांवाला बाग में हर साल 13 अप्रैल को उन शहीदों की को भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित की जाती हैं, जिन्होंने उस वक्त इस हत्याकांड में अपनी जान गंवाई थी।
  • जलियांवाला बाग हत्याकांड पर साल 1977 में एक हिन्दी फिल्म (Jallianwala Bagh Movie) भी बनाई गई थी। इस फिल्म में शबाना आजमी और विनोद खन्ना लीड रोल में थे।
  • इसके अलावा देश की आजादी पर आधारित प्रसिद्ध फिल्म (रंग दे बसंती, लेजेंड ऑफ भगत सिंह, फिल्लौरी फिल्म) जलियांवाला बाग हत्याकांड को फिल्माया गया है।
  • इसके अलावा साल 1981 में सलमान रुश्दी के द्धारा लिखित उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन में भी इस भयानक नरसंहार को दर्शाया गया है।
  • इस हत्याकांड को आधुनिक इतिहास का सबसे ज्यादा खून-खराबे वाला नरसंहार कहा गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद बनी हंटर जांच समिति – Hunter Commission

इतिहास के इस सबसे निर्मम हत्‍याकांड के बाद पूरे पंजाब में विद्रोह की आग फैल गई। इसके बाद दबाव में उस समय भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाई।

इस कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर को दोषी पाए जाने के बाबजूद भी कोई सजा नहीं दी गई, बल्कि उसका डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।

इसके बाद कांग्रेस ने पंजाब की घटनाओें की जांच के लिए महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू समेत महान राजनेताओं वाली एक समिति का गठन किया। जिसके बाद इस कमेटिी ने पंजाब पर रुल कर चुके गर्वनर माइकल ओडायर और सेना के जनरल डाययर की कटु निंदा की।

जनरल डायर की हत्या – General Dyer Death

जलियांवाला बाग हत्याकांड में मारे गए हजारों बेकसूर लोगों की जान का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940  में करीब 21 साल बाद, ऊधम सिंह लंदन गए और उन्होंने वहां कैक्सटन हॉल में माइकल ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी।

हालांकि, इसके लिए ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को सूली पर लटका दिया गया था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद रवीन्द्रनाथ टैगोर ने वापस की उपाधि – Rabindranath Tagore Rejected The Title Knighthood

भारत के राष्ट्रगान जन-गण-मन के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर को जब अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग नरसंहार का पता चला, तब उन्होंने इस घटना पर दुख जताते हुए ब्रिटिश सरकार को ”नाइटहुड” की उपाधि लौटा दी थी।

जलियांवाला हत्याकांड इतिहास का सबसे क्रूरतम और दर्दनाक हत्याकांड माना जाता है, जिसके दूरगामी परिणाम दिखाई गिए और इस हत्याकांड ने आजादी की लड़ाई को एक नई दिशा दी। वहीं इसके परिणाम हमें स्वतंत्रता प्राप्ति के रुप में मिले।

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11 thoughts on “इतिहास का काला अध्याय- जलियांवाला बाग हत्याकांड”

  1. जलियांवाला बाघ के बारे में जानकारी पढ़ कर, हमारे भारत के प्राचीन इतिहास को पढ़ने का मन करता है. कैसे हमारे पूर्वजों ने अपना आज बदल कर, हम सब का कल बदला है.

    हमारे भारत क युवा काफी हद इन बातों को भूल गए हैं. जैसे मानों इनका इससे दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं। हमारे पूर्वजों हमारा कल सबारने के लिए अपना आज नयोछाबर करदिया, आज इसकी किसी को भी परवा नहीं है.

    हम्हे अपनी सोच बदलनी चाहिए क्योंकि सोच बदलेगी तो देश बदलेगा।

    ज्ञानीपण्डित को बहुत बहुत धन्यवाद, जहाँ आज के भारतीय हिंदी को भूलते जा रहे हैं वहीँ ज्ञानीपण्डित हिंदी में योगदान से रहा है. जय हिंदी, जय भारत।

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